स्वतंत्र भारत के युद्ध का इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कीजिये ?

इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी भी किसी भी देश पर आक्रमण पहले से नही किया है ,परन्तु फिर भी उसे सदैव हमलावरों का सामना करना पड़ा है|

स्वतंत्र भारत के युद्ध का इतिहास
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात बही भारत का यही इतिहास दोहराया जाता रहा है !और पकिस्तान तो युद्ध के लिए सदैव ही छेड़ता रहता है ,और पकिस्तान से सीधा युद्ध भी पकिस्तान से हुआ और चार बार युद्ध हुआ तथा एक बार भारतीय सेना को चीन से भी टकराना पड़ा !और भारत इसके लिए पहले से तैयार नही था ,फिर बही भारत ने युद्ध किया और उस समय हमरे देश के राजनेता सफ़ेद कबूतर उडाने में लगे हुए थे ,जिसका परिणाम बहुत बुरा हुआ फिर भी हमरे देश के वीर जवानों ने हिम्मत नही हारी और बड़ी बहादुरी से युद्ध किया हमरे बहादुर सैन्य बल की सौर्य गाथा का वर्णन करने के पहले आइये इस युद्ध के बारे में संक्षिप्तता में जान ले...

१९४७ का भारत और पकिस्तान का युद्ध 

भारत  और  पकिस्तान के बीच प्रथम युद्ध १९४७ में में हुआ था ,और यह जम्मू -कश्मीर को लेकर हुआ था जो १९४७ से लेकर १९४८ के बीच के दौरान चला| 

पृष्ठभूमि 

१८१५ के पहले आज कश्मीर के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र को पंजाब पहाड़ी राज्यों के रूप में जाना जाता था और इसमें २२ छोटे -छोटे स्वतंत्र  राज्य शामिल थे | और इन छोटे राज्यों में राजपूत राजाओं के द्वारा शासन किया जाता था|

वास्तव में पंजाब के पहड़ी राज्यों के राजपूत मुग़ल साम्राज्य की एक प्रमुख शक्ति थे और उन्होंने सिक्खों के खिलाफ मुगलों के समर्थन में कई लड़ाईयां लड़ी थीं| 

और मुग़ल साम्राज्य के पतन और ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के उदय के बाद सिक्ख पहाड़ी राज्यों की सभा को अस्वीकार करने लगे | इसलिए सिक्ख गुरु महाराज रणजीत सिंह इन छोटे राज्यों की जीत के लिए रवाना हो गये|

अंततः एक के बाद एक सभी पहाड़ी राज्यों पर महाराजा रणजीत सिंह ने विजय प्राप्त की और इनको विलय कर जम्मू का राज्य का कहा जाने लगा | और जे.हंचिसन और जे.पी.वोगेल द्वारा लिखित पंजाब जातियों का इतिहास में दिए गये वर्णन के अनुसार २२ राज्यों १६ राज्य हिन्दू और 6 मुस्लिम राज्यों में से दो राज्यों कोटली और पूंछ पर मुगलों द्वारा ,भीमबेर और खारी -खैरियाला पर छिब्ब द्वारा ,राजौरी पर जरालो द्वारा और किश्तवाड़  पर किश्तवाडियों के द्वारा शासन किया जाता था| 

और सिक्ख साम्राज्य और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच प्रथम ब्रिटिश सिक्ख युद्ध १८४५-४६ के बीच में लड़ा गया था | पराजित सिक्खों पर अंग्रेजों ने १२ लाख का जुर्माना लगया हुआ था तथा जिसकी पूर्ति न कर पाने के कारण ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने डोंगरा शासक गुलाब सिंह को ७५,०००० रूपये का भुगतान करने के बदले में सिक्ख राज्य से कश्मीर प्राप्त करने की अनुमति दी|

 गुलाब सिंह जम्मू और कश्मीर राज्य के संस्थापक बने नवगठित राजसी राज्य के प्रथम महाराजा बन गये ! १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त करने तक जम्मू और कश्मीर की रियासत भारत के ब्रिटिश राज की दूसरी सबसे बड़ी रियासत थी|  

भारत का बंटवारा 

सारी दुनिया में अंग्रेजी हुकूमत कम्जूर हो चुकी थी ,और अंग्रेजी हुकूमत के प्रति भारत में असंतोष अपनी चरम सीमा पर था ,जिससे मजबूर होकर अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा| 

परन्तु भारत छोड़ने से पहले उन्होंने भारत के विभाजन की कुटिल नीति बनाई जिससे हिन्दू मुस्लिम एकता को खत्म करने का प्रयास किया और वर्ग विशेष के तुष्टिकरण की प्रक्रिया को प्राम्भ कर दिया और यह प्रचारित किया कि भारत में हिन्दू मुस्लिम साथ में रह सकते अतः मुस्लिमों के लिए अलग से राष्ट्र हो ,इस प्रकार की मांग को हवा देना शरू कर दिया |

परिणामस्वरूप भारत और पकिस्तान के रूप में दो राष्ट्र हो ऐसी पृष्ठिभूमि तैयार कर दी गयी ! और तो और जैसा की भारत कई रियासतों से मिलकर बना था और अंग्रेजों ने यह शर्त रखी कि रियासत रजा या नवाब को ही अधिकार होगा कि वह किस देश में जाना चाहता है एवं उस देश की से उस राज्य की सीमा का लगना अनिवार्य है| 

अतः इसके लिए एक विलय पत्र तैयार कर दया गया और जिन राज्यों ने इन शर्तों के आधार पर विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया वह राज्य उस देश के हिस्से में आ गया ! हैदराबाद ,जूनागढ़ ,भोपाल आदि के नवाबों ने भारत में विलय पर असहमति जताई जिसे सरदार पटेल के प्रयासों से निराकृत किया गया और ये राज्य भारत के हिस्से बने|

अंग्रेज़ी सरकार और पकिस्तान दोनों ने जम्मू-कश्मीर को पकिस्तान के साथ विलय कराने का संयुक्त अभियान चलाया और लार्ड माउन्टबेटन एवं जिन्ना ने महाराजा पर दबाव बनाना शुरू कर दिया ! अंग्रेज चाहते थे की कम्जूर भारत ही उनकी सफलता है ,क्योंकि जम्मू -कश्मीर के सामरिक महत्व से वो पुर्णतः परिचित थे| 

क्या इस कुटिलता से भारतीय नेतृत्व अनभिज्ञ था  ?यह प्रश्न समय के साथ गर्त में समां गया ! और भारतीय नेतृत्व यानी पंडित जवाहरलाल नेहरु ने बही महाराजा हरीसिंह पर शर्तें लगाना शुरू कर दिया कि विलय से पहले महाराजा अपने सारे अधिकार शेख को हस्तांतरित करें|

सेख को न तो जम्मू -कश्मीर की जनता चाहती थी और न ही यह नीतिगत था ! नेहरु जी की ये शर्तें  जिन्ना का खुला आमंत्रण और अंग्रेजी सरकार का दबाव इन सब ने राष्ट्र भक्त धैर्यवान राजा की परीक्षा लेना सुरु कर दिया और जब पकिस्तान और अंग्रेजों को यह विश्वास हो गया कि जम्मू कश्मीर का पकिस्तान के साथ विलय होना संभव नही है   तब पकिस्तान की सेना ने कबालियों के रूप में भारत पर हमला कर दिया|

महाराजा को मजबूर किया गया की वो अपने सारे अधिकार सेख को ही दिए जांयें  और इस शर्त के पूरा होने में पर ही भारत में कश्मीर का विलय हुआ और जम्मू -कश्मीर राज्य भारत का एक राज्य बना | एक राष्ट्र भक्त राजा को अनेक इतिहासकारों की लेखनी में अन्याय का शिकार होना पड़ा|

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