प्रतिवेदन लेखन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, स्वरुप, महत्व, घटक एवं मुख्य लक्षण

    प्रतिवेदन प्रशासनिक कार्य या प्रक्रिया का अंश है जिसके माध्यम से विस्तृत सूचना या ज्ञान को उन व्यक्तियों तक पहुँचाया जाता है जिन्हें इनकी आवश्यकता होती है। आधुनिक समय में शायद ही कोई ऐसा व्यावसायिक क्षेत्र होगा जहाँ प्रतिवेदन का प्रचलन न हो।

    व्यावसायिक प्रक्रिया में कई अवसरों पर प्रतिवेदन लेखन की आवश्यकता होती है। एक कनिष्ठ अधिकारी अपने उच्च अधिकारी को निजी सचिव अपने अधिकारी को समय-समय पर प्रतिवेदन प्रेषित करता है। 'प्रतिवेदन' एक समस्या या विषय को परिभाषित करता है। तथ्यों को क्रमवार सम्भावित सीमा तक प्रस्तुत करने का प्रयास है जिसके आधार पर निष्कर्ष प्राप्त कर सुझावों की प्रस्तुति सम्भव होती हैं। प्रतिवेदन का मुख्य विषय तथ्यपरक यथार्थ सूचना, रिकार्ड्स, घटनाओं आदि तथ्यों को एकत्रित कर उसके विश्लेषण निर्वाचन, संक्षिप्तीकरण से प्राप्त निष्कर्षो व उनके आधार पर सुझावों की प्रस्तुति है।

    प्रतिवेदन का अर्थ 

    प्रतिवेदन एक ऐसा कार्यालयीन शब्द है जो एक से अधिक अर्थ की अभिव्यक्ति करता है। इसके अन्तर्गत शिकायती पत्र / आरोप-पत्र संस्थाओं आदि में घटने वाली घटनाओं से सम्बन्धित समस्त विषय समाहित हो जाते हैं एवं विषय प्रस्तुति व विषयोपचार दोनों के माध्यम से समस्या का आंकलन प्रस्तुत किया जाता है।

    परिभाषा

    अंग्रेजी शब्दकोष के अनुसार- "प्रतिवेदन से अभिप्राय एक मौखिक या लिखित लेखा-जोखा से है जो सुना हुआ देखा हुआ, अध्ययन किया हुआ इत्यादि होता है।"

    मरफी व चार्ल्स के अनुसार- "व्यावसायिक प्रतिवेदन एक निश्चित, महत्वपूर्ण व्यावसायिक उद्देश्य से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया तथ्यों का निष्पक्ष वस्तुपरक योजनाबद्ध प्रस्तुतीकरण है।' डॉक्टर और डॉक्टर के अनुसार, "प्रतिवेदन एक ऐसा प्रलेख है जिसमें सूचना देने के उद्देश्य से किसी 'विशेष समस्या की जाँच की जाती है और उस सम्बन्ध में निष्कर्ष, विचार एवं कभी-कभी सिफारिशें भी प्रस्तुत की जाती है।"

    डॉ. मित्तल के शब्दों में- "सरकारी या गैर-सरकारी स्तर पर विभिन्न मामलों की छानबीन के लिए जो जाँच समितियाँ, आयोग, अध्ययन दल गठित किये जाते हैं, उनके द्वारा जाँच के पश्चात् प्रस्तुत किये गये विवरण, सुझाव और सिफारिशों आदि को सामूहिक रूप से 'प्रतिवेदन' कहा जाता है।"

    प्रतिवेदन की विशेषताएँ

    प्रतिवेदन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

    1. प्रतिवेदन का सम्बन्ध घटना / प्रकरण विशेष से रहता है।

    2. इसका उद्देश्य सत्य को प्रकाश में लाना होता है। 

    3. सम्बन्धित घटना / प्रकरण का विवरण एक स्वतन्त्र जाँच समिति/दल या आयोग द्वारा एक निश्चित/निर्धारित समय सीमा के अन्दर तैयार किया जाता है।

     4. इसमें घटना की पुनरावृत्ति की सम्भावना को रोकने के लिए सुझावों की प्रस्तुति व उसके अनुपालन के निर्देश दिये जाते हैं। 

    5. प्रमाण आलेखन करना। इसका अभिप्राय, विवरण, सूचना व शिकायत के दर्ज करने से होता है। 

    6. रोचकता (Interest ) 

    प्रतिवेदन का यह पक्ष अभिव्यक्ति से सम्बन्धित है। अतः अभिव्यक्ति का एकमात्र उद्देश्य अन्य का ध्यान आकृष्ट कराने से है। इस हेतु निम्न बातें आवश्यक है-

    (i) प्रतिवेदक को प्रतिवेदन के सम्बन्ध में अध्ययनकर्ता की जानकारी का स्तर,

     (ii) प्रतिवेदन में अध्ययनकर्ता के समझने में सहायक सामग्री का समावेश, 

    (iii) अध्ययनकर्ता के अनुरूप भाषा का चयन, 

    (iv) पुनरावृत्ति कम से कम हो,

     (v) भाषा में सुबोधता, सरलता व प्रवाह होना।

    व्यावसायिक प्रतिवेदन के स्वरूप

    व्यावसायिक प्रतिवेदनों के निम्नलिखित प्रारूप होते हैं-

    1. व्यक्तिगत अथवा अव्यक्तिगत प्रतिवेदन (Personal and Impersonal Report )

    इस प्रकार का प्रतिवेदन व्यक्ति अथवा अधिकारियों के पद के अनुसार होता है। व्यक्तिगत प्रतिवेदन कोई भी व्यक्ति किसी भी कारणवश प्रस्तुत कर सकता है। उदाहरणार्थ, अंकेक्षक, संचालक, अध्यक्ष का प्रतिवेदन। 

    2, औपचारिक अथवा अनौपचारिक प्रतिवेदन (Formal and Informal Report ) 

    इस प्रकार के प्रतिवेदनों की प्रस्तुति का एक निर्धारित प्रारूप होता है। इसमें औपचारिकताओं का अनुपालन होता है व उच्च अधिकारियों के निर्देशों के अनुरूप ये प्रतिवेदन बनाये जाते हैं, जबकि अनौपचारिक प्रतिवेदन एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति के सम्प्रेषण के माध्यम के रूप में प्रस्तुत होता है। इसमें बहुधा औपचारिक भाषा का प्रयोग किया जाता है। इन प्रतिवेदनों का स्वरूप बड़ा व छोटा हो सकता है। इनका स्वरूप एक पत्र की तरह भी हो सकता है।

    3. नियमित अथवा विशिष्ट प्रतिवेदन (Regular and Special Report )

     नियमित प्रतिवेदन एक निर्धारित समयावधि के पश्चात् प्रेषित किया जाता है। इसमें किसी प्रकार की सलाह / सिफारिशों को सम्मिलित नहीं किया जाता बल्कि इनका स्वरूप तथ्यात्मक होता है। उदाहरणार्थ, मासिक व्यय पत्रक, जबकि विशिष्ट प्रतिवेदन किसी घटना के घटित होने के परिप्रेक्ष्य में की जाती है। उदाहरणार्थ, चोरी, भूकम्प, अग्नि दुर्घटना घटित होने की रिपोर्ट।

    4. लिखित अथवा मौखिक प्रतिवेदन (Written and Oral Memorandum)

    लिखित प्रतिवेदन प्रमाणिक होता है। एक लिखित दस्तावेज की भाँति मान्यता प्राप्त होता है, जबकि मौखिक प्रतिवेदन अविलम्ब उच्चाधिकारियों को उपलब्ध कराने की दृष्टि से बनाया जाता है।

    5. तथ्यात्मक प्रतिवेदन (Factual Report)

    तथ्यात्मक प्रतिवेदन विवरणों, जानकारियों तथ्यों पर आधारित होते हैं। इसमें सिफारिशों व निष्कर्षों का समावेश भी किया जाता है। उदाहरणार्थ, किसी विशेष शिकायत पर जाँच समिति का प्रतिवेदन |

     6. निजी प्रतिवेदन (Personal Report )

    इस प्रकार का प्रतिवेदन प्रायः गोपनीय या व्यक्ति विशेष पर आधारित होता है। इसका प्रचार प्रसार सर्वथा वर्जित होता है।

    प्रतिवेदनों का महत्व

    प्रबन्धकीय कार्य बिना प्रतिवेदन के उसी प्रकार है जिस प्रकार बिना हृदय का एक मानव शरीर क्योंकि एक वृद्ध व्यवसाय जिसमें लाखों कर्मचारी कार्यरत होते हैं, वहाँ प्रतिवेदन ही सम्प्रेषण का एकमात्र साधन होता है। प्रतिवेदन किसी प्रबन्धन में निर्णय लेने की क्षमता के विकास का आधारभूत उपकरण है। यह देखा गया है कि एक व्यवसायी कुल कार्यकारी समय का 80 प्रतिशत समय केवल प्रतिवेदन व पत्रों के लिखने में लगाते हैं। व्यवसाय सम्बन्धी महत्वपूर्ण निर्णय प्रतिवेदनों में उल्लिखित सूचनाओं अथाग सिफारिशों के माध्यम से लिये जाते हैं अर्थात। एक उद्योग या व्यवसाय के निरन्तर विकास के लिए प्रतिवेदन एक आवश्यक उपकरण है। व्यावसायिक प्रतिवेदन किसी संस्था विशेष की कार्य पद्धति को सुधारने व अधिक दुरुस्त करने के उद्देश्य से तैयार किये जाते हैं। आज व्यावसायिक विश्व में आपसी प्रतिस्पद्ध के चलते अधिकांश कमजोर इकाइयाँ बीच में हो बन्द हो जाती है। पिछड़ जाती है, अतः उन्हें बचाने के लिए उनकी रुग्ण स्थिति के लिए जिम्मेदार कारणों को खोजकर उनका  निराकरण आवश्यक होता है, ताकि उनके व्यवसाय को पुनःस्थापित किया जा सके। इस हेतु आवश्यक है कि नि नये दृष्टिकोणों व नवीन रूपों को अपनाया जाये। ये नवीन दृष्टिकोण प्रतिवेदनों के माध्यम से ही प्रस्तावित किये। जाते हैं।

    प्रतिवेदन के महत्व को निम्न बिन्दुओं में व्यक्त किया जा सकता है-

    1. प्रतिवेदन सन्तुलित आँकड़ों के व्यवस्थित व वैज्ञानिक विश्लेषण के द्वारा निष्कर्ष व सुझाव प्रस्तुत करत है। यद्यपि ये सुझाव/सिफारिशें विशेषज्ञों की शिकायतों के द्वारा दी जाती हैं, अतः एक प्रबन्धन इन सिफारिशों को अपनाये जाने हेतु बाध्य हो जाता है।

    2. जाँच / निरीक्षण प्रतिवेदन वास्तविक व विस्तृत सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं जो कि हमें योजना के क्रियान्वयन व नियन्त्रण में सहायक होती हैं।

     3. समिति के विशेषज्ञों के माध्यम से प्रस्तुत प्रतिवेदन में जटिल से जटिल समस्याओं का निराकरण होता है।

    4. प्रगति प्रतिवेदन के द्वारा एक संगठन में योजना व नीतियों के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन में सहायता मिलती है।

    5. इसका अभिप्राय विवरण, सूचना व शिकायत के दर्ज करने से होता है।

    प्रतिवेदन प्रस्तुतीकरण प्रक्रिया के घटक या तत्व

    एक प्रतिवेदन प्रस्तुतीकरण प्रक्रिया के निर्धारक तत्व निम्नलिखित होते हैं-

    1. प्रकरण तत्व (Case Factor )

    प्रतिवेदन किसी प्रकरण विशेष, यथा, घटना/दुर्घटना/ उपद्रव/विशेष मामले पर ही आधारित होते हैं।

    2. जाँच तत्व (Investigation Factor ) 

    प्रतिवेदन केवल विशेष रूप से गठित समिति/दल/आयोग द्वारा ही प्रस्तुत किये जाते हैं।

    3. समय तत्व (Time Factor )

    प्रतिवेदन के प्रस्तुतीकरण की एक निर्धारित समय सीमा होती है जिसे आवश्यकता पड़ने पर सुविधानुसा गया / घटाया जा सकता है। 

    4. उद्देश्य तत्व (Objective Fa tor)

    प्रतिवेदन का मूल उद्देश्य जनहित में मूल तत्व को उजागर करना होता है जिसे सुस्पष्टता/निष्पक्षता/पूर्व ग्राहीनता/ तथ्यात्मकता / प्रामाणिकता इत्यादि को दृष्टिगत कर विश्लेषित किया जाता है।

    उक्त तत्वों की उपस्थिति में कोई भी प्रतिवेदन भ्रामक नहीं होता। विषय के अनुरूप निर्मित प्रतिवेदन हो न्यायसंगत व सर्वमान्य होता है जिसके परिणाम सदैव अच्छे होते हैं। समन्वित भाषा में तैयार प्रतिवेदन सदैव ग्रा व प्रभावपूर्ण होता है।

    अतः प्रतिवेदन स्वयं में एक अस्त्र होता है-

     * जिससे निर्णय क्षमता पैदा होती हैं।

    * सम्बन्धित व्यक्तियों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों के भविष्य का फैसला किया जाता है (पदोन्नति/ निष्कासन सम्बन्धी)।

    * किसी संगठन/संस्था/विभाग के कार्यकलापों के वास्तविक चलन का विवरण प्राप्त होता है। 

    * किसी व्यक्ति विशेष / सम्बन्धित व्यक्तियों के आचरण का पता चलता है।

    * किसी संगठन/संस्था/विभाग के अस्तित्व का बोध होता है। 

    अर्थात् प्रतिवेदन में एक विशेष प्रकार की सूचना होती है जो बहुतायत आम जनता को मालूम नहीं होती है। इसके द्वारा किसी जटिल/कठिन बात को सरलता/सुगमतापूर्वक जनहिताय सार्वजनिक किया जाता है, ताकि विषय सम्बन्धित सही-सही पक्ष /सही-सही तस्वीर व सही विवरण जनता के समक्ष आये।

    प्रतिवेदन के सम्बन्ध में एक ज्ञात अत्यन्त ही गौर करने वाली है कि प्रतिवेदन का प्रस्तुतकर्ता का विषय (घटना/दुर्घटना के सम्बन्ध में) में दक्ष होना अनिवार्य नहीं है बल्कि उसमें सम्बन्धित विषय तथ्यों को गहराई से जानने/समझने की क्षमता हो, साथ ही साथ उसमें सम्बन्धित विषय के विवरण को सरल/संयत भाषा में प्रस्तुत करने की क्षमता का होना अत्यन्त अनिवार्य है।

    निष्कर्षत: प्रतिवेदन सम्प्रेषण की ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के लिए जो उन्हें प्रयोग करना चाहता है, कुछ सूचनाएँ अपने पास रखता है अर्थात् प्रतिवेदन सूचना के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

    एक प्रभावशाली व्यावसायिक प्रतिवेदन के मुख्य लक्षण 

    आधुनिक युग में प्रतिवेदन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अतः एक प्रभावशाली प्रतिवेदन में निम्न गुण होना आवश्यक हैं-

    1. स्पष्टता (Clarity)

    एक प्रतिवेदन में तथ्यों का सही व स्पष्ट उल्लेख करना चाहिए अर्थात् प्रतिवेदन को भाषा सुबोध व सरल और स्पष्ट होनी चाहिए। यदि प्रतिवेदन छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित हो तो अधिक स्पष्टता आयेगी।

    2. संक्षिप्तता (Concize )


    प्रतिवेदन संक्षिप्त होना चाहिए। उसमें अनावश्यक बातों का उल्लेख नहीं होना चाहिए। विषय से सम्बन्धित व प्रासंगिक बातें ही प्रतिवेदन में समाहित की जायें।

    3. शुद्धता (Correctness)

    प्रतिवेदन तय व सूचनाओं के संकलन पर आधारित होता है और इसी अधार पर निर्णय भी लिये जाते हैं। अतः आवश्यक है कि तथ्यों व समंकों में शुद्धता होनी चाहिए वरन् इसके प्रभाव में गलत निष्कर्ष व निर्णय लिये जा सकते हैं जिसका प्रभाव हमारे व्यवसाय पर पड़ सकता है। प्रतिवेदन में अमक जानकारी के समावेश से बचना चाहिए।

    4. सम्पूर्णता (Completeness) 

    प्रतिवेदन का स्वरूप ऐसा हो कि वह सम्बन्धित विषय या वस्तुस्थिति का समग्र चित्रण प्रस्तुत करे अर्थात् एक ही दृष्टि में अध्ययनकर्ता के मस्तिष्क में उठने वाले प्रत्येक प्रश्न का धान सम्भव हो व साथ ही साथ निर्णय का सरल मार्ग सम्भव हो सके। प्रतिवेदन का यह स्वरूप सर्वोत्तम व आदर्श होगा।

    5. यथार्थता (Realism)

    प्रतिवेदन का उद्देश्य प्रतिवेदक के मस्तिष्क में स्पष्ट होना चाहिए। उसका अनुसन्धान, विश्लेषण व सुझाव प्रतिवेदन के उद्देश्य के लिए निर्देशित होता है यथार्थता से विश्वास बढ़ता है व वैश्यों की पूर्ति सरल हो जाती है।



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