वैश्वीकरण क्या है- अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता, विशेषतायें, एवं प्रभाव [Vaishvikaran kya hai hindi]- 2024

वैश्वीकरण का सम्बन्ध मुख्यतः विश्व बाजारीकरण से लगाया जाता है जो व्यापार अवसरों के विस्तार का द्योतक है। वैश्वीकरण में विश्व बाजारों के मध्य पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न होती है क्योंकि व्यापार देश की सीमाओं में न बँधकर लाभ की दशाओं का दोहन करने की दशा में अग्रसर होता है।

    अतः इस उद्देश्य से विश्व का सूचना एवं परिवहन साधनों के माध्यम से एकाकार हो जाना वैश्वीकरण है। इस प्रकार की व्यवस्थाओं में खुली अर्थव्यवस्थाओं का जन्म होता है, जो प्रतिबन्धों से मुक्त तथा जिसमें स्वतन्त्र व्यापार होता है। इस प्रकार वैश्वीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों या नियमों का स्थान महत्वपूर्ण हो जाता है।

    वैश्वीकरण का अर्थ 

    वैश्वीकरण का अभिप्राय किसी देश की अर्थव्यवस्था को विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ने से है जिससे व्यावसायिक क्रियाओं का विश्व स्तर पर विस्तार हो सके तथा देशों की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता का विकास हो। इस प्रकार वैश्वीकरण को अन्तर्राष्ट्रीयकरण के रूप में भी देखा जाता है। अन्य शब्दों में, वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।

    वैश्वीकरण की परिभाषाएं

    वैश्वीकरण को विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है- 

    ऑस्कर लेन्जे के अनुसार- "आधुनिक समय में अल्प विकसित देशों के आर्थिक विकास का भविष्य मुख्यतः अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर करता है।'

    प्रो. दीपक नैयर के अनुसार- "आर्थिक क्रियाओं का किसी देश की राजनैतिक सीमाओं के बाहर तक विस्तार करने को वैश्वीकरण कहते हैं।"

    प्रो. एन. वाघुल के शब्दों में- "वैश्वीकरण शब्द बाजार क्षेत्र के तीव्र गति से विस्तार को प्रकट करता है, जो विश्वव्यापी पहुँच रखता है।" 

    जॉन नैसविट एवं पोर्टसिया अबुर्डिन के अनुसार- "इसे ऐसे विश्व के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें सभी देशों का व्यापार किसी एक देश की ओर गतिमान हो रहा हो। इसमें सम्पूर्ण विश्व एक अर्थव्यवस्था है तथा एक बाजार है।"

    अतः उपर्युक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि "वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था को सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत किया जाता है ताकि सम्पूर्ण विश्व एक ही अर्थव्यवस्था और एक ही बाज़ार के रूप में कार्य कर सके और जिसमें सीमाविहीन अन्तर्राष्ट्रीयकरण व्यवहारों के लिए व्यक्तियों, पूँजी, तकनीक माल, सूचना तथा ज्ञान का पारस्परिक विनिमय सुलभ हो सके। वैश्वीकरण को सार्वभौमीकरण, भूमण्डलीयकरण और अन्तर्राष्ट्रीय आदि नामों से भी पुकारा जाता है।"

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    वैश्वीकरण की आवश्यकता 

    वैश्वीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से हैं-

    (1) वैश्वीकरण एकरूपता एवं समरूपता की एक प्रक्रिया है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व सिमटकर एक हो जाता है।

    (2) अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास के लिए वैश्वीकरण की नीति अपनायी गयी। 

    (3) एक राष्ट्र की सीमा से बाहर अन्य राष्ट्रों में वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय नियमों या बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ राष्ट्र के उद्योगों की सम्बद्धता वैश्वीकरण है।

    (4) विश्व के विभिन्न राष्ट्र पारस्परिक सहयोग एवं सद्भावना के साथ बाजार तन्त्र की माँग एवं पूर्ति की सापेक्षित शक्तियों के द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय कर अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करते है।

    (5) इस नीति के अन्तर्गत 34 उद्योगों को सम्मिलित किया गया। औद्योगिक नीति के अन्तर्गत उच्च प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में 51% तक के विदेशी पूँजी विनियोग को अनुमति प्रदान की गयी। 

    (6) वैश्वीकरण की नीति को विदेशी उन्नत तकनीकी से निर्मित वस्तुओं तथा राष्ट्र की औद्योगिक संरचना के लिए आवश्यक बिजली, कोयला, पेट्रोलियम जैसे- मूलभूत क्षेत्रों तक सीमित रखा गया था। 

    (7) जिन मामलों में मशीनों के लिए विदेशी पूँजी उपलब्ध होगी, उन्हें स्वतः उद्योग लगाने की अनुमति मिल जायेगी।

    (8) विदेशी मुद्रा नियमन कानून में भी संशोधन किया गया।

    (9) वर्तमान में अन्य निजी कम्पनियाँ भी विदेशों में इकाइयाँ स्थापित कर औद्योगिक विश्व व्यापीकरण की ओर अग्रसर हैं। 

    (10) वीडियोकॉन, ओनिडा, गोदरेज एवं बी. पी. एल. जैसी कम्पनियाँ, जापान, जर्मनी एवं इटली की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का सहयोग लेकर उन्नत किस्म की वस्तुओं का उत्पादन कर अत्यधिक लाभ अर्जित कर रही हैं।

    (11) इस नीति के अन्तर्गत रु.2 करोड़ या कुल पूँजी के 25% से कम की उत्पादक मशीनें बिना पूर्वानुमति के आयात की जा सकेंगी।

    (12) प्रवासी भारतीय को पूँजी निवेश के लिए अनेक प्रोत्साहन तथा सुविधाएँ दी गयीं। भारतीय कम्पनियों को यूरो निर्गम जारी करने की अनुमति प्रदान की गयी है। 

    (13) वैश्वीकरण की दिशा में सरकारी क्षेत्र की उर्वरक कम्पनी कृषक भारतीय कोऑपरेटिव लि. को अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित एक फास्फेट उर्वरक कारखाने को अधिग्रहण कर संचालित करने की अनुमति सरकार ने प्रदान की है।

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    वैश्वीकरण की विशेषताएँ या लक्षण

    वैश्वीकरण की प्रमुख लक्षण या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

    (1) इसमें, विश्व स्तर पर व्यापारिक बाधाओं को न्यूनतम करने के प्रयत्न किये जाते हैं जिससे दो राष्ट्रों के मध्य वस्तुओं तथा सेवाओं का सुलभ एवं निर्बाध गति से आवागमन हो सके।

    (2) वैश्वीकरण औद्योगिक संगठनों के विकसित स्वरूप को जन्म देता है। 

    (3) विकसित राष्ट्र, अपने विशाल कोषों को व्याज दर के लाभ में विकासशील राष्ट्रों में विनियोजित करना अधिक पसन्द करते हैं ताकि उन्हें उन्नत दर का लाभ प्राप्त हो सके।

    (4) राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया जाता है कि विभिन्न राष्ट्रों के बीच सूचना एवं प्रौद्योगिकी का स्वतन्त्र प्रवाह होकर उन्नत तकनीकी का लाभ सभी राष्ट्र उठा सकें।

    (5) पूँजी व्यावसायिक संगठनों की आत्मा होती है। वैश्वीकरण के अन्तर्गत विभिन्न अनुबन्ध करने वाले राष्ट्रों के मध्य पूँजी का स्वतन्त्र प्रवाह रहता है, जिससे पूँजी का निर्माण सम्भव हो सके। 

    (6) वैश्वीकरण बौद्धिक श्रम एवं सम्पदा का भी विदोहन करता है अर्थात् एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्रों में श्रमिक वर्ग एवं कार्मिक वर्ग का स्वतन्त्र रूप से आवागमन सम्भव होता है। 

    (7) वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवहारों पर लगे प्रतिबन्धों पर ढील धीरे-धीरे बढ़ती जाती है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। 

    (8) वैश्वीकरण का प्रतिफल सम्पूर्ण विश्व में संसाधनों का आवंटन एवं प्रयोग बाजार की आवश्यकता तथा प्राथमिकता के आधार पर प्राप्त होने लगता है जिससे अविकसित एवं विकासशील राष्ट्रों को भौतिक तथा मानवीय संसाधनों की उपलब्धि शीघ्र होने लगती है, जो पूर्व में इतनी सहजता से प्राप्त नहीं होती थी।

    वैश्वीकरण की नीति के लाभ या प्रभाव 

    वैश्वीकरण, बीसवीं शताब्दी की ऐतिहासिक तथा इक्कीसवीं शताब्दी की प्रमुख आर्थिक घटना के रूप में उभरकर सामने आया है। भारत में वर्ष 1991 के पश्चात् से ही, वैश्वीकरण की नीति को अपनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है और उसे विभिन्न प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक-सामाजिक लाभ प्राप्त हुए हैं, जिन्हें निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

    1. आधारभूत संरचना का विकास

    वैश्वीकरण से विभिन्न राष्ट्रों के आधारभूत ढाँचे में परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं; जैसे औद्योगिक शक्ति के वैकल्पिक स्रोतों का पता लगा है, विद्युत ऊर्जा, सड़कों, नये रेलमार्गो, नव-बन्दरगाहों, वायु परिवहन तथा दूर संचार का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो गया है। 

    2. बाजारों का विस्तार 

    वैश्वीकरण में व्यावसायिक संस्थाओं का आकार बहुत विशाल होता है तथा व्यावसायिक क्षेत्र भी अत्यधिक विस्तृत होता है, जिसके कारण इन संस्थाओं को सम्पूर्ण विश्व में व्यवसाय की छूट मिल जाती है तथा बाजारों का विस्तार होता जाता है।

    3. पर्यावरण के प्रति सजगता

    वैश्वीकरण व्यवसाय के वातावरणीय घटकों की विविधता को बढ़ाता है। इससे सैन्य सन्तुलन, संसाधनों के हस्तान्तरण की सुविधाओं, व्यापारिक सम्बन्ध, दूसरे राष्ट्र की जनसंख्या, जलवायु, बीमारियों, औषधियों, अस्त्र-शस्त्र व्यापार तथा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा लागतों पर पूर्ण रूप से ध्यान आकृष्ट हो जाता है, जो अन्ततः सभी दृष्टि से सभी राष्ट्रों के लिए लाभप्रद होता है।

    4. श्रम, पूँजी एवं सूचना प्रौद्योगिकी का स्वतन्त्र प्रवाह

    वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप सभी सम्बद्ध राष्ट्रों में उन्नत गुणवत्ता युक्त सूचना एवं तकनीकी, योग्य एवं अनुभवी कार्मिक तथा कार्यशील पूँजी का स्वतन्त्र प्रवाह होता है, जिससे अर्थव्यवस्था को संबल मिलता है। 

    5. स्वतन्त्र प्रतिस्पर्धा का विकास 

    इस प्रक्रिया के अन्तर्गत, आयात-निर्यात नीति को पूर्ण प्रोत्साहन बिना कोई बाधा उत्पन्न किये हुए प्रदान किया जाता है, जिससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को जन्म मिलता है।

    6. उत्पादन क्षमता का स्वतन्त्र निर्धारण 

    वैश्वीकरण का यह प्रभाव होता है कि उत्पादन क्षमता का निर्धारण, स्वतः ही बाजार शक्तियों के द्वारा होता रहता है तथा समय की बचत भी होती है।

    7. उपयुक्त उत्पादन एवं व्यापार ढाँचे का चयन

    इसमें प्रत्येक राष्ट्र अपनी आर्थिक-सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप तथा उपलब्ध संसाधनों को ध्यान में रखते हुए किसी वस्तु के उपयुक्त उत्पादन एवं व्यापारिक संरचना का चयन करने के लिए स्वतन्त्र होता है।

    8. व्यवसाय का स्थानान्तरण सम्भव

    वैश्वीकरण के कारण, आपातकालीन परिस्थितियों के अन्तर्गत एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के व्यवसायों को अपने यहाँ स्थानान्तरित कराने में सहायता करता है ताकि समाप्ति के पश्चात् वे व्यवसाय पुनः मूल राष्ट्र में हस्तान्तरित हो सकें। 

    9. निर्माण संयन्त्रों की बहुलता

    वैश्वीकरण की नीति को अपनाने से एक ही राष्ट्र के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अनेक निर्माण संयन्त्र स्थापित हो जाते हैं, जिससे रोजगार को बढ़ावा मिलता है तथा उनके उत्पादन का लाभ सम्पूर्ण या एक विस्तृत क्षेत्र के उपभोक्ताओं को प्राप्त होता है।

    10. स्वदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों का विकास 

    वैश्वीकरण के पश्चात् भारत में स्वदेशी, बहुराष्ट्रीय निगमों की स्थापना का दौर चल रहा है। आई.सी.आई.सी. आई. रिलायन्स, एच.डी.एफ.सी., आई.डी.बी.आई., कोटक महिन्द्रा आदि निगम अब विदेशों तक अपने क्षेत्र का विस्तार करने में लगे हैं, इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी संबल मिला है।

    11. अन्य प्रभाव

    इसके अन्य प्रभाव निम्नांकित हैं-

    (1) भुगतान सन्तुलन सकारात्मक होने लगा है। 

    (2) सामाजिक क्षेत्रों जैसे चिकित्सा, शिक्षा, परिवार नियोजन आदि पर भारी विनियोजन सम्भव हो पाया है।

    (3) रोजगार के अवसरों में वृद्धि होने से बचत एवं विनियोग में भी भारी वृद्धि हुई है। 

    (4) राष्ट्रीय जीवन स्तर में उत्तरोत्तर सुधार होता जा रहा है।

    (5) सरकार, समाज, संगठन तथा कार्मिकों के मध्य परस्पर मधुर सम्बन्ध बने हैं।

    (6) बहुराष्ट्रीय निगमों के आगमन के कारण देश की बहुमुखी प्रतिभाओं का पलायन रुका है।

    वैश्वीकरण के विपक्ष में तर्क या वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव

    वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण के दुष्प्रभावों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

    (I) व्यवसाय पर दुष्प्रभाव

    वैश्वीकरण के व्यवसाय पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-

    (1) वैश्वीकरण से गलाकाट प्रतिस्पर्धा का जन्म होता है और इससे अर्थव्यवस्था को धक्का लग सकता है। 

    (2) लघु एवं कुटीर उद्योगों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है। इससे क्षेत्रीय विषमता को बढ़ावा मिलता है। 

    (3) स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण निर्यातों को प्रोत्साहन नहीं मिलता है। इससे आयातित वस्तुएँ बहुत महँगी हो जाती हैं। 

    (4) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में निरन्तर बढ़ोतरी हानिकारक बन जाती है क्योंकि स्थानीय व्यावसायिक तथा औद्योगिक संगठनों पर बाह्य संस्थाओं का नियन्त्रण होने लगता है।

    (5) संस्थाओं के अधिग्रहण करने या संविलयन करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। इससे छोटी संस्थाओं के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो जाता है।

    (6) बड़े या बहुराष्ट्रीय संगठन आर्थिक क्षेत्र पर एकाधिकार करने की स्थिति में आ जाते हैं। इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भुगतान सन्तुलन नकारात्मक स्थिति में आने की सम्भावना बढ़ जाती है।

    (II) सामाजिक और आर्थिक दुष्प्रभाव

    वैश्वीकरण के सामाजिक-आर्थिक दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-

    (1) दैनिक जीवन की वस्तुओं के लिए सम्पूर्ण विश्व खुली अर्थव्यवस्था के अनुरूप होने पर देश में ऐसी वस्तुएं  महँगी होने लगेंगी।

    (2) उद्योगों में यन्त्रीकरण बढ़ने से बेरोजगारी की सम्भावना बढ़ जाती है, जो राष्ट्र के हित के लिए ठीक नहीं है।

    (3) बहुराष्ट्रीय निगमों को महत्व प्रदान करने से विकासशील राष्ट्रों की योजनाओं की प्राथमिकता प्रभावित होगी और इससे देश का सन्तुलित आर्थिक विकास भी प्रभावित हो सकता है।

    (4) विदेशी कम्पनियों के द्वारा भारतीय उद्योगों के साथ भेदभाव प्रारम्भ हो गया है। उन्हें मिलने वाली छूटों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कारण वंचित किया जा रहा है।

    (5) बिना सरकारी संरक्षण के अनेक घरेलू व्यवसाय या व्यावसायिक संस्थाएँ बर्बाद या बन्द होने की कगार पर आ सकती हैं।

    (6) वैश्वोकरण की नीति लागू होने के उपरान्त समस्त राष्ट्र व्यावसायिक बाजारों की श्रेणी में आ जायेंगे, जिससे उनकी सार्वभौमिकता पर आंच आ सकती है।

    वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण के प्रभाव 

    भिन्न-भिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं में विश्व अर्थव्यवस्था के प्रभाव का अनुभव किया जा रहा है। प्रत्येक देश का उद्योग तथा व्यापार विश्व के अन्य भागों में हो रहे परिवर्तनों से प्रभावित होता है। सम्पूर्ण विश्व एक बाजार बन चुका है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं खुली अर्थव्यवस्था होती हैं और व्यवसाय वैश्विक स्थिति प्राप्त करता जा रहा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां  भिन्न-भिन्न देशों में कार्य कर रही हैं।अन्तर्राष्ट्रीय उपक्रम भी देखने को मिलते हैं, वैश्विक विपणन के लिए दूरदर्शन के संजाल का प्रयोग किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक, विश्व व्यापार संगठन जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की जा चुकी है। इन सभी से यह पता चलता है कि वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण का प्रभाव प्रत्येक स्थान पर दिखायी पड़ रहा है। 

    अतः संक्षेप में, हम वैश्वीकरण के प्रभावों को निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-

    (1) सामाजिक चेतना का विकास 

    शिक्षा के प्रचार प्रसार ने लोगों की सोच को प्रभावित किया है।  रूढ़िवादी विचार का स्थान उदारवादी विचार ले रहे हैं। जीवन स्तर में सुधार हुआ है तथा जीवन-शैली में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ रहे हैं। सन्देशवाहन के उन्नत साधनों से विश्व का आकार छोटा हो गया है। विकसित देशों की सोच एवं जीवन के ढंग का अनुसरण अन्य देशों के लोगों द्वारा किया जा रहा है। व्यवसाय से की जाने वाली अपेक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं। पहले लोगों को जो कुछ उद्योग प्रदान करता था, वे उससे सन्तुष्ट रहते थे किन्तु अब वे उचित मूल्यों पर उत्तम गुणवत्ता की वस्तुएँ चाहते हैं। वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है, जहाँ केवल वे व्यावसायिक उपक्रम जीवित रह पायेंगे, जो उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि के अनुरूप वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन कर सकें। लोग व्यवसाय को सामाजिक रूप से भी प्रत्युत्तर बनना देखना चाहते हैं। औद्योगिक इकाइयों द्वारा प्रदूषण का नियन्त्रण भी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें व्यवसाय को महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना है। इस प्रकार व्यवसाय के वैश्वीकरण ने समाज में एक नये प्रकार की सामाजिक चेतना को जन्म दिया है।

    (2) प्रौद्योगिकी परिवर्तन 

    विश्व में बहुत तेजी से प्रौद्योगिकी परिवर्तन हो रहे हैं। औद्योगिक इकाइयाँ प्रतिदिन नये-नये एवं श्रेष्ठतर उत्पादों का निर्माण कर रही हैं। दूरसंचार एवं परिवहन की उन्नत विधियों ने विश्व विपणन में क्रान्ति सी ला दी है। उपभोक्ता अब इतना सचेत हो गया है कि वह प्रतिदिन से श्रेष्ठ उत्पाद प्राप्त करना चाहता है। कम्पनियाँ शोध एवं विकास पर अत्यधिक धन खर्च कर रही हैं। इस प्रकार तीव्र प्रौद्योगिकी परिवर्तनों ने उत्पादों के लिए विश्व बाजार उत्पन्न कर दिया है।

    (3) व्यवसाय का वैश्विक स्वरूप 

    आधुनिक व्यवसाय स्वभाव से वैश्विक बन गया है। निर्माणी वस्तुओं में विशिष्टीकरण का गुण पाया जाता है। ये वस्तुएँ वहीं उत्पादित की जाती हैं जहाँ उत्पादन लागत की प्रतिस्पर्धा होती है। इस प्रकार की वस्तुएँ अन्य देशों को निर्यात की जाती हैं। वे वस्तुएँ जो मितव्ययी ढंग से उत्पादित नहीं की जा सकती हैं, बाहर से आयात की जाती हैं। बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में प्रवेश कर चुकी हैं, जो विभिन्न देशों की वस्तुओं का निर्यात करने के लिए भारत में उपलब्ध उत्पादन सुविधाओं का भी प्रयोग करती है। इस प्रकार, भारतीय व्यवसाय वैश्विक आर्थिक प्रवृत्तियों से प्रभावित है।

    भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण हेतु उठाये गये कदम

    हमारे भारत देश में केन्द्रीय सरकार द्वारा उद्घोषित सन् 1991 की औद्योगिक नीति के परिणामस्वरूप, वैश्वीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी। भारतीय उपक्रमों को विश्व स्तर पर प्रतियोगिता की श्रेणी में लाने हेतु सरकार ने उन सभी प्रकृति की वस्तुओं को स्वतन्त्र व्यापार नीति के अन्तर्गत लिया है, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध विश्व के उपभोक्ताओं से है। इस नीति के अनुसार, वैश्वीकरण को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये गये हैं-  

    (1) परमाणु ऊर्जा तथा रेल परिवहन को छोड़कर शेष आरक्षित उद्योगों की संख्या 17 से घटाकर 2 कर दी गयी है, जिससे निजी या बहुराष्ट्रीय निगम क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया है।

    (2) 97% लाभ अर्जित करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों की इकाइयों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान की गयी है।

    (3) अर्थव्यवस्था को विदेशी पूँजी आगमन के लिए खोल दिया गया है, जिसमें अब- 

    (i) विदेशी निवेशकों की अंश पूंजी में भागीदारी 49% से बढ़ाकर 51% कर दी गयी है।

    (ii) उच्च प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों को 51% पूँजी निवेश की सुविधा, बिना कोई बाधा डाले एवं लाल फीताशाही के चंगुल से मुक्त करते हुए दी जायेगी। 

    (iii) आयात-निर्यात नीति में से 69 वस्तुओं को आयात की प्रतिबंधित सूची में से हटा लिया गया है। 

    (iv) 1 अप्रैल, 2001 से विशेष आयात लाइसेंस एवं परिमाणात्मक प्रतिबन्ध समाप्त कर दिये गये हैं। 

    (v) विश्व व्यापार संगठन द्वारा व्यापार को सम्बद्ध बौद्धिक सम्पदा अधिकार का हिस्सा बनाये जाने से पेटेण्ट अधिनियम 1970 में भी सरलतम प्रावधान किये गये हैं। 

    (vi) देश से निर्यात करने वाले विदेशी घरानों को 51% विदेशी पूँजी निवेश की छूट प्राथमिकता के आधार पर दी गयी है।

    (vii) अनिवासी भारतीयों या विदेशी निगमों को धातु वर्गीय तथा आधारभूत क्षेत्र के 9 उद्योगों एवं 13 अन्य प्राथमिकता वाले उद्योगों में 100% तक विदेशी अंश पूँजी के निवेश की अनुमति प्रदान की गयी है।

    (viii) 25 जून, 2002 को भारत सरकार ने प्रिण्ट मीडिया के क्षेत्र में 26% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, टेक्नोलॉजी एवं मेडीकल प्रकाशनों में 74% विदेशी निवेश की अनुमति दी है।

    (ix) उत्पादन शुल्क की 11 दरों को घटाकर केवल दो सरल एवं युक्तिसंगत दरों में परिवर्तित कर दिया गया है, जिससे व्यवसायी एवं उपभोक्ता, दोनों ही परेशानी से बच सकें।

    (x) विदेशी कम्पनियों को अचल सम्पत्तियों का लेन-देन करने, भारतीय पूंजी बाजार में विनियोग करने तथा एक अनिवासी से दूर अनिवासी को अंश हस्तान्तरण की अनुमति दी गयी है।

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