शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र एवं उपयोगिता क्या है?-in hindi

 क्षेत्र:

शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र इसकी अवधारणा के अनुरूप है। यदि हम शैक्षिक तकनीको श्रव्यदृश्य साधनों के रूप में लेते हैं तो इसका क्षेत्र, शिक्षा में केवल श्रव्य दृश्य साधनों तक ही सीमित रहता है। यदि शैक्षिक तकनीकी का तात्पर्य हम अभिक्रमित अध्ययन लेते हैं तो इसके क्षेत्र में अभिक्रमित-अधिगम अध्ययन सामग्री ही आती है। यदि शैक्षिक तकनीकी का अर्थ हम व्यवस्था उपागम के रूप में लेते हैं तो इसका क्षेत्र काफी बढ़ जाता है।

आज शैक्षिक तकनीकी, प्रव्य दृश्य सामग्री अथवा अभिक्रमित अधिगम नहीं है, बल्कि ये तो इनके अंग माने जाने लगे हैं। शैक्षिक तकनीकी को अब एक व्यापक विज्ञान माना जाने लगा है, अतः इसके क्षेत्र में भी विशालता एवं विषदता दृष्टिगोचर होती है।

विभिन्न विद्वानों ने शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र की विभिन्न प्रकार से व्याख्या की है।

Derek Rowntra. 1973 ने इसके निम्नांकित क्षेत्र बताये है-

(1) अधिगम के लक्ष्य तथा उद्देश्य चिन्हित करना। 

(2) अधिगम वातावरण का नियोजन करना।

(3) विषय-वस्तु की खोज करना तथा उन्हें संरचित (Structuring) करना।

(4) उपयुक्त शिक्षण व्यूह रचनाओं (Teaching Strategies) तथा अधिगम संचार (Learning Media) का चयन करना।

(5) अधिगम व्यवस्था की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।

(6) भविष्य में प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये मूल्यांकन के आधार पर वांछित सूझ-बूझ प्राप्त करना। 

एक अन्य विद्वान के अनुसार शैक्षिक-तकनीकी, वैज्ञानिक स्तर पर सामान्य शैक्षिक प्रशासन, सामान्य शैक्षिक परीक्षण तथा शैक्षिक अनुदेशन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित है। 

तक्शी साकामाटो (Takshi Sakamato) ने बताया है कि शैक्षिक तकनीकी प्रमुख रूप से शिक्षा के तीन पहलुओं-अदा प्रदा तथा प्रक्रिया (input. output and process) को व्यवस्थित करती है और उनका विकास कर सुधार लाने में प्रयत्नशील है। मैथिस (B. C. Mathis) शिक्षण व्यूह रचनाओं, शिक्षण पद्धतियां तथा विधियों एवं तकनीकियों के विज्ञान को शैक्षणिक तकनीकी का नाम देता है। रिचमण्ड (1970) ने शैक्षिक तकनीकी को तीन भागों में विभाजित किया है-

 (1) Designing appropriate learning situation. (2) Realizing objectives of teaching or uraining. 

(3) Bringing best means of instruction. 

डेविस शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में शिक्षा और प्रशिक्षण की समस्त समस्याओं के अध्ययन और विभिन्न अधिगम स्रोतों को महत्त्वपूर्ण मानता है।

 डॉ० भार्गव के अनुसार, इसे प्रमुख रूप से 5 भागों में बॉटा जा सकता है-

(1) शिक्षण प्रक्रिया तथा शिक्षण कार्य,

 (2) शिक्षण व्यूह रचनायें तथा प्रतिमान एवं शिक्षण सिद्धान्त,

 (3) शिक्षण अधिगम व्यवस्था

 (4) क्रियात्मक अनुसंधान तथा

 (5) पाठ योजनायें ।

M. P. State Board of Teacher Education ने सन् 1980 के Need based curriculum for B.Ed. Courses में शैक्षिक तकनीकी के अन्तर्गत निम्नांकित प्रकरण (Topics) रखे हैं-

(1) शैक्षिक तकनीकी में नवीन धारणायें- स्कूल ब्रॉडकास्ट, टेलीविजन, अभिक्रमित अध्ययन, शिक्षण मशीन तथा माइक्रोटीचिंग । 

(2) अ-प्रक्षेपी शिक्षण सहायक सामग्री-श्यामपट, बुलेटिन बोर्ड, चार्ट, पोस्टर, ग्राफ आदि।

(3) प्रक्षेपी शिक्षण सहायक सामग्री-फिल्म स्ट्रिप, फिल्म, टेप लाइब्रेरी आदि का निर्माण ।।

(4) शैक्षिक फिल्म, फिल्म स्ट्रिप तथा टेपरिकॉर्डिंग के स्रोत तथा प्रयोग ।

(5) शैक्षिक तकनीकी की agencies  लूम्सडेन (Lunisdcine. 1964), मैथिस (B. C. Mathis) तथा फिन (J. D. Finn) एवं डोसीको (Dececco) आदि ने शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र को दो प्रमुख भागों में बाँटा गया है-

(1) कठोर शिल्प शैक्षिक तकनीकी तथा 

(2) कोमल शिल्प शैक्षिक तकनीकी अथवा शैक्षिक अभियांत्रिकी (Hardware Educational Technology and Software Educational Technology or Educational Engineering)| इन्दौर यूनीवर्सिटी के द्वारा आयोजित शैक्षिक तकनीकी के ग्रीष्मकालीन इन्स्टीट्यूट (1979) में उपयोगी शिल्प शैक्षिक तकनीकी (Use-ware Educational Technology) को भी शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में शामिल करने का सुझाव दिया गया।

शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता

शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता आज दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व का प्रत्येक देश इसे अपना रहा है। कोठारी कमीशन (1966) ने अपनी एक टिप्पणी में कहा है, 'पिछले कुछ सालों में भारत के विद्यालयों में कक्षा अध्ययन को फिर से जीवनदान देने या उसे अनुप्राणित करने की प्रविधियों पर काफी ध्यान दिया गया है। बुनियादी शिक्षा का पहला उद्देश्य प्राइमरी स्कूलों के सारे जीवन और कार्य- कलापों में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना एवं बच्चे के मन, शरीर तथा आत्मा का सर्वोत्तम तथा सर्वागीण विकास करना था। इस दृष्टि से भी शैक्षिक तकनीकी का अपना महत्त्व स्वयंसिद्ध है।

अधिगम सिद्धान्तों की जगह शिक्षण सिद्धान्तों को उचित महत्त्व प्रदान करने वाली विषय-वस्तु शैक्षिक तकनीकी ही है। शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता को निम्नांकित भाँति अधिक सरलता से प्रस्तुत किया जा सकता है-

 (1) शिक्षक के लिए उपयोगिता

शैक्षिक तकनीकी पर अधिकार रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के व्यवहारों का अध्ययन कर सकता है. समझ सकता है और उनमें बाछित सुधार लाने का प्रयत्न कर सकता है। शिक्षक को विषय-वस्तु के साथ-साथ व्यवहार, अध्ययन और व्यवहार सुधार की प्रणालियों का ज्ञान भी होना चाहिए। शैक्षिक तकनीकी इस क्षेत्र में शिक्षक को समर्थ बनाती है। शैक्षिक तकनीकी शिक्षक को शिक्षण उपागमों, शिक्षण व्यूह रचनाओं तथा शिक्षण विधियों के विषय में वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करती है। किस समय, किस प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए कौन-सी श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जाय, रेडियो, टेलीविजन का उपयोग कर किस प्रकार से रेडियो विजन तथा कैसेट विजन का प्रयोग किया जाय तथा छात्रों को अपने सीखने की गति के अनुसार अध्ययन करने के लिए कैसे अभिक्रमित अध्ययन सामग्री तैयार की जाय यह शैक्षिक तकनीकी ही शिक्षक को बताती है। प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में प्रभावशाली शिक्षक तैयार करने के लिए माइक्रो टीचिंग, मिनी टीचिंग, सीमुलेटेड टीचिंग तथा टी० ट्रेनिंग आदि नवीन विधियों का प्रयोग करने के लिए शैक्षिक तकनीकी दिशा निर्देश प्रदान करती है।

शिक्षक अपनी शैक्षिक प्रशासन तथा प्रबन्ध से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन करने के लिए प्रणाली उपागम (Systems Approach) का प्रयोग कर सकता है। वह कक्षा में व्यक्तिगत भिन्नताओं (Individual Differences) की समस्या के समाधान के रूप में अभिक्रमित अनुदेशन का उपयोग कर सकता है। सिंह तथा कुलश्रेष्ठ (1980) ने ठीक ही लिखा है- "The teacher needs educational technology to bridge the lives of the children, aims of education and psychology in the present technological era.

सच तो यह है कि शिक्षक का कोई भी कार्य हो चाहे पाठ योजना बनाने का, शिक्षण बिन्दुओं के चयन का पढ़ाने की अच्छी विधियों को चुनने का या छात्रों को समझने का अथवा अपनी शिक्षण समस्याओं को सुलझाने का और अपने शिक्षण व्यवसाय को एक व्यवसाय के रूप में विकसित करने का शैक्षिक तकनीकी, शिक्षक को प्रत्येक पद पर प्रत्येक पहलू पर तथा प्रत्येक बिन्दु पर निर्देशन देती है और उसकी पूर्ण रूप से सहायता करती है। आज के युग में शिक्षक बिना शैक्षिक तकनीकी का सहारा लिये एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता।

(2) सीखने के क्षेत्र में उपयोगिता 

शैक्षिक तकनीकी हमें सीखने की प्रभावपूर्ण विधियों तथा सिद्धान्तों का ज्ञान प्रदान करती है, सीखी हुई -वस्तु को स्थायी करने की विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है और छात्रों में सीखने के प्रति विषय- प्रेरणा जाग्रत करने में तथा उनकी रुचि बनाये रखने में सहायता करती है सीखने के क्षेत्र में छात्रों को उनकी गति के अनुसार ही सीखने के सिद्धान्त का पालन करती है। शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने दोनों ही प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक विवेचन कर शिक्षण अधिगम व्यवस्था बनाये रखती है। शिक्षण  के नये प्रतिमानों की देन शैक्षिक तकनीकी की ही है जो हमें अधिगम और शिक्षण के स्वरूप को भली-भाँति समझाते है। इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली तथा सार्थक बनाने में शिक्षक तथा शिक्षार्थी एवं प्रशिक्षणार्थी सभी के लिए उपयोगी बनायी जा सकती है।

(3) समाज के लिए उपयोगिता 

गैरीसन (Garrison) आदि द्वारा शिक्षा मनोविज्ञान के सन्दर्भ में कहे गये शब्द शैक्षिक तकनीकी पर भी लागू होते है-"We know in advance if we are...(educational technologists), that certain methods will be wrong. Therefore they save us from mistakes and clarifies human motives and thus makes it possible to achieve understanding among individuals and groups (teaching and learning).

समाज में आज जनसाधारण के पास जो रेडियो, ट्रॉजिस्टर, टेपरिकॉर्डर आदि की सुविधायें हैं. उनका उपयोग शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में किया जा सकता है। शैक्षिक तकनीकी, शिक्षकों और छात्रों तथा जनसाधारण के ज्ञानात्मक प्रभावात्मक तथा मनोगत्यात्मक पक्षों का उचित विकास करती है। सीमित संसाधन (Resources) वाले देशों के लिए शैक्षिक तकनीकी ऐसी प्रविधियों का वरदान देती है जिनकी मदद से जन-शिक्षा (Mass education) का प्रचार प्रसार तथा विस्तार होता है। शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से एक प्रभावशाली शिक्षक नेता या समाज सुधारक के ज्ञान तथा कौशल का उपयोग टेलीविजन, टेप तथा रेडियो, अभिभाषण आदि के द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक भाग तक सरलता से पहुँचाया जा सकता है !

अतः कहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी आज के तकनीकी युग में शिक्षक की उपादेयता बढ़ाती है, छात्रों व छात्राध्यापकों को प्रभावशाली विधि से सिखाती है और समाज के लिए ज्ञान के संचयन, प्रचार, प्रसार तथा विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है।

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