शिक्षण || Teaching

शिक्षण का अर्थ

शिक्षण कार्यों के विषय में ज्ञान प्राप्त करने से पूर्व शिक्षण का अर्थ समझना अधिक युक्तिपूर्ण होगा। शिक्षण अंग्रेजी के शब्द Teaching का हिन्दी पर्याय है। शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है। अतः इस पर प्रत्येक देश की शासन प्रणाली सामाजिक दर्शन, सामाजिक परिस्थितियों तथा मूल्यों आदि का प्रभाव पड़ता है। जिस देश में जैसी शासन प्रणाली या सामाजिक तथा दार्शनिक परिस्थितियाँ होंगी वहाँ उसी प्रकार की शिक्षण प्रक्रिया होगी। विभिन्न दर्शनों, संस्कृतियों तथा देश के सामाजिक स्वरूप के आधार पर शिक्षण के अर्थ को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

    एकतन्त्र में शिक्षण का अर्थ 

    एकतन्त्र शासन में तानाशाही की इच्छा प्रमुख होती है। इस प्रकार के वातावरण में शिक्षण प्रक्रिया शिक्षक-प्रधान (Teacher Dominated) मानी जाती है। शिक्षक कक्षा में आदर्श माना जाता है। वह छात्रों पर अपना रौव दाब रखता है और उन पर अपने आदेशों तथा विचारों को बलपूर्वक ठुंसता रहता है। इस शिक्षण प्रक्रिया में छात्र शान्तिपूर्वक शिक्षक को सुनने के लिए बाध्य है। शिक्षक की प्रत्येक बात को बिना किसी तर्क के उन्हें स्वीकार करना होता है। शिक्षक सक्रिय रहते हैं और छात्र भयभीत श्रोता बने बैठे रहते हैं। इस प्रकार के शिक्षण में वार्तालाप (Discussion), तर्क (Logic) तथा शिक्षक की आलोचना करने का अधिकार छात्रों को नहीं है। दूसरे शब्दों में कक्षा में शिक्षक अपना राज्य तानाशाह के रूप में चलाता है। 

    इसे भी पढ़ें- 

    मॉरीसन (Morrison 1934)- ने इस प्रकार के शिक्षण का वर्णन करते हुए लिखा है-

    "This teaching is an intimate contact between a more mature personality and a less mature one which is designed to further the education of the later."

    शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें अधिक विकसित (परिपक्व ) व्यक्तित्व कम विकसित व्यक्तित्व के सम्पर्क में आता है और कम विकसित व्यक्तित्व (अपरिपक्व ) की भावी शिक्षा के लिये विकसित व्यक्तित्व प्राप्त कराने के लिये व्यवस्था करता है। इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था शिक्षण केन्द्रित होती है। शिक्षण व्यवस्था अधिकतर स्मृति स्तर तक सीमित रहती है। इस प्रकार के शिक्षण में आलोचना करने के लिए या छात्रों की क्षमताओं के विकास के लिये अवसर नहीं दिये जाते। ऐसी शिक्षा एकतन्त्रीय शिक्षा कहलाती है।

    लोकतन्त्र में शिक्षण का अर्थ

    लोकतन्त्र में शासन प्रणाली मानवीय सम्बन्धों पर आधारित रहती है तथा सामान्य जनता की इच्छा सर्वोत्तम मानी जाती है। इस प्रकार की प्रणाली में शिक्षण भी लोकतन्त्रीय आधार लिए रहता है। यहाँ पर शिक्षक और छात्र दोनों ही सक्रिय रहते हैं और उनके मध्य शाब्दिक एवं अशाब्दिक अन्त:क्रिया चलती रहती है। कक्षा में शिक्षक के साथ छात्रों को तर्क करने, प्रश्न करने उत्तर पाने तथा अन्य प्रकार के वार्तालाप करने के अनेक अवसर रहते हैं। यहाँ पर छात्र एवं शिक्षक दोनों ही एक-दूसरे के व्यक्तित्व को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं।

    गेज (N. L. Gage 1962) ने इस प्रकार के शिक्षण के विषय में लिखा है-

    "(This) teaching is a form of inter personal influence aimed at changing the behaviour potential of another person." 

    "शिक्षक केवल पथ-प्रदर्शक या निर्देशक के रूप में कार्य करता है और स्व-अनुशासन पर बल देता है।"

    एडमन्ड एमीडोन ने लोकतन्त्र या जनतन्त्र शासन प्रणाली की शिक्षा की परिभाषा इस प्रकार दी है- "शिक्षण को एक अन्तःप्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके अन्तर्गत कक्षा कथनों को समावेशित किया जाता है जो शिक्षक और छात्रों में कक्षा में होते हैं।" 

    जनतन्त्रीय शिक्षण में शिक्षण को अन्तःप्रक्रिया के रूप में लिया जाता है। इस प्रकार का शिक्षण मानवीय सम्बन्ध केन्द्रित अथवा छात्र केन्द्रित होता है तथा छात्र एवं शिक्षक परस्पर सम्मान देते हैं और बिना किसी भय के अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार के शिक्षण में स्व-अनुशासन या स्वतन्त्र अनुशासन पर विशेष बल दिया जाता है। जनतन्त्र के स्वतन्त्रता, समानता तथा अभिव्यक्ति प्रदर्शन के मूल्यों का पूर्ण सम्मान जनतन्त्रीय शिक्षण में किया जाता है।

    हस्तक्षेप रहित शासन में शिक्षण का अर्थ

    इस प्रकार के शिक्षण में शिक्षक एक मित्र के रूप में कार्य करता है और छात्रों को अधिक सक्रिय बनाते हुए, उन्हें अधिक से अधिक अवसर विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रदान करता है। इस प्रकार वह छात्रों की क्रियाओं में हस्तक्षेप न करके उनकी सृजनात्मक क्षमताओं के विकास की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करता है। 

    ब्रुबेकर (Brubacher)- ने हस्तक्षेप रहित शासन में शिक्षण का विवेचन निम्न शब्दों में किया है-

    "Teaching is an arrangement and manipulation of a situation in which there are gaps and obstructions which an individual will seek to overcome and from which he will learn in the course of doing so."

    ब्रुबेकर के अनुसार- शिक्षण में ऐसी व्यवस्था अथवा परिस्थिति उत्पन्न की जाती हैं जिनमें छात्रों के समक्ष कठिनाइयाँ एवं समस्यायें उत्पन्न की जाती हैं तथा छात्र इन कठिनाइयों एवं समस्याओं के समाधान के लिये अधिक सक्रिय होकर कार्य करते हैं और विषय वस्तु सीख जाते हैं।

    यह शासन प्रणाली कार्य तथा सम्बन्ध केन्द्रित होती है। इस शिक्षण की मूलभूत मान्यता है कि छात्रों में कठिनाइयों के निदान करने की तथा समस्या समाधान की क्षमता होती है। ये सही निर्णय ले सकने में समर्थ होते हैं। बशर्ते उन्हें सही व्यवस्था में सही तरह से चिन्तन हेतु सही निर्देशन प्राप्त हो सके।

    हस्तक्षेप रहित शासन में शिक्षण व्यवस्था में छात्र अधिक सक्रिय एवं क्रियाशील होते हैं। शिक्षक का कार्य तो केवल एक फैसिलिटेटर (Facilitator) का होता है जो छात्रों के लिये ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करता है एवं उन्हें छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है, जिनमें छात्रों को अपनी समस्याओं व कठिनाइयों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सके और वे भलीभाँति तर्क-वितर्क कर उनका निदान कर सकें। 

    क्लार्क (1970) के शब्दों- में यह शिक्षण ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रारूप तथा परिचालन की व्यवस्था इस प्रकार से की जाती है. जिससे छात्रों के व्यवहार में बोंछित परिवर्तन लाया जा सके।

    इस व्यवस्था के शिक्षण में छात्र अधिक जिज्ञासु होते हैं और अपनी जिज्ञासा की शान्ति हेतु समाधान तक पहुँचने का प्रयास करते हैं।

    शिक्षण की परिभाषाएँ

    शिक्षक के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित परिभाषाएँ अधिक सहायता करेंगी- 

    (a) शिक्षण का शब्दकोषीय अर्थ 

    (1) Dictionary of Psychological and Psychoanalytical Terms- इस शब्दकोष के अनुसार "दूसरे को सीखने में मदद करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहते हैं।"

    "The art of assisting another to learn (which includes) providing of information (instruction) and of appropriate situations, conditions or activities designed to facilitate learning."

    (2) World Book Encyclopaedia के अनुसार- "शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे एक व्यक्ति दूसरे को ज्ञान, कौशल तथा अभिरुचियों को सीखने या प्राप्त करने में सहायता करता है।" 

    "The process by which one person helps others achieve knowledge, skills and aptitudes."

    (3) The Little Oxford Dictionary के अनुसार- "ज्ञान प्रदान करना, कौशल का विकास करना अनुदेशन देना, पाठ पढ़ाना तथा उन्हें उत्साहित करना शिक्षण का अर्थ है।"

    "Impart knowledge or skill, give instruction or lessons, instil and inspire with."

    (b) विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रदत्त परिभाषाएँ 

    गेज (Gage) के अनुसार- शिक्षण एक प्रकार का पारस्परिक प्रभाव है जिसका उद्देश्य है दूसरे व्यक्ति के व्यावहारों में वांछित परिवर्तन लाना।" 

    "Teaching is an act of interpersonal influence aimed at changing the ways in which other person can or will behave."

    रायन्स (Ryans) के अनुसार- "दूसरों को सीखने के लिए दिशा निर्देश देने तथा अन्य प्रकार से उन्हें निर्देशित करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहा जाता है।"

    "Teaching is concerned with the activities which are concerned with the guidance or direction of the learning of others."

    स्किनर (Skinner ) के अनुसार - "शिक्षण पुनर्बलन की Contingencies का क्रम है।"

    "Teaching is the arrangement of contingencies of reinforcement" 

    स्मिथ (Smith) के अनुसार- "शिक्षण का उद्देश्य निर्देशित किया है।"

    "Teaching is a goal directed activity." 

    जेम्स एम० थाइन (James M. Thyne) के अनुसार - "समस्त शिक्षण का अर्थ है सीखने में वृद्धि करना।"

    "All teaching is the promotion of learning." 

    क्लार्क (Clarke, 1970) के अनुसार- "शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके प्रारूप तथा संचालन की व्यवस्था इसलिए की जाती है जिससे छात्रों के व्यवहारों में परिवर्तन लाया जा सके ।"

    "Teaching process is designed and performed to produce change in student behaviour." 

    बर्टन (Burton) ने शिक्षण को अधिगम हेतु उद्दीपन, मार्ग प्रदर्शन तथा दिशाबोध कहा है।एवं  बैन (Bann) इसे प्रशिक्षण कहता है। तथा रायबर्न (Ryburn) इसे एक ऐसा सम्बन्ध मानता है जो छात्रों को उनकी शक्तियों के विकास में सहायता देता है। 

    के० पी० पाण्डेय के अनुसार- "Teaching is an influence-directed activity.. It is influencing the learner with a specific content structure."

    एडमंड एमीडन (Edmond Amidon) के अनुसार - "शिक्षण एक अन्त:प्रक्रिया है, जिसमें मुख्यतः कक्षा वार्ता होती है जो शिक्षक व छात्रों के मध्य कुछ परिभाषित की जा सकने वाली क्रियाओं के माध्यम से घटित होती है।"

    "Teaching is an interactive process, primarily involving classroom talk which takes place between teacher and pupil and occurs during certain definable activities."

    मौरीसन (H. C. Morrison) के अनुसार - "शिक्षण एक परिपक्व व्यक्तित्व तथा कम परिपक्व के मध्य आत्मीय या घनिष्ट सम्बन्ध / सम्पर्क है जिसमें कम परिपक्व को शिक्षा की दिशा की ओर अग्रसित किया जाता है।"

    "Teaching is an intimate contact between a more mature personanty and a less mature one which is designed to further the deduation of the later"

    विभिन्न प्रकार की अनेक परिभाषाओं का विश्लेषण करने के पश्चात डॉ० शिव के० मित्रा इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं- 

    "Teaching is a series of acts carried out by a teacher and guided by the formulation of teaching task in a formalised instructional situation."

    डॉ० एस० पी० कुलश्रेष्ठ (1999) के शब्दों में- कहा जा सकता है कि शिक्षण, प्रक्रियाओं की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को ज्ञान प्रदान करने के लिये शिक्षण के कार्य को सम्पन्न करने के लिए अनेक प्रकार की क्रियायें करता है और छात्रों के व्यवहार में आत्मीयता के साथ वाँछित परिवर्तन लाने का प्रयास करता है।

    शिक्षण की प्रकृति तथा विशेषताएँ 

    उपर्युक्त परिभाषाओं की विवेचना के पश्चात् शिक्षण की निम्नांकित विशेषताएँ परिलक्षित की गयी-

    1. शिक्षण अधिगम की क्रिया को प्रभावशाली तथा व्यवस्थित बनाता है।

    2. शिक्षण की समस्त प्रक्रियाओं का आधार मनोविज्ञान है।

    3. शिक्षण के दो प्रमुख अंग है- (क) सीखने वाला तथा (ख) सिखाने वाला।

    4. शिक्षण और अधिगम की परिस्थितियों में सम्बन्ध स्थापित करता है।

    5. शिक्षण का कार्य ज्ञान प्रदान करना है।

    6. शिक्षण मार्गदर्शन करता है।

    7. शिक्षण क्रियाशीलता बनाये रखता है।

    8. शिक्षण का अर्थ अधिगम तथा शिक्षण की समस्त प्रक्रियाओं के सगठन से सम्बन्धित है।

    9. शिक्षण छात्रों में उत्सुकता जाग्रत करता है। 

    10. शिक्षण कला एवं विज्ञान दोनों ही है।

    11. शिक्षण एक कौशल युक्त क्रिया है।

    12. शिक्षण में सांकेतिक, क्रियात्मक तथा शाब्दिक व्यवहार निहित रहते हैं।

    उपर्युक्त परिभाषाओं तथा विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है (डॉ० कुलश्रेष्ट, 1985) के अनुसार- कि शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ सम्पादित की जाती है। इन क्रियाओं के फलस्वरूप शिक्षण और सिखाने वाली परिस्थितियों में सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

    उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ 

    अच्छे शिक्षण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है-

    1. अच्छे शिक्षण में वांछनीय सूचनाएँ दी जाती है। 

    2. अच्छे शिक्षण में व्यक्ति स्वयं सीखने के लिए प्रेरित होता है।

    3. अच्छे शिक्षण के लिए प्रभावशाली नियोजन आवश्यक होता है।

    4. अच्छे शिक्षण में छात्र क्रियाशील बने रहते हैं। 

    5. अच्छा शिक्षण चुनी हुई बातों का ज्ञान प्रदान करता है।

    6 अच्छा शिक्षण जनतन्त्रीय आदर्शों पर आधारित रहता है। 

    7. अच्छा शिक्षण दया व सहानुभूतिपूर्ण होता है।

    8. अच्छा शिक्षण निर्देशात्मक होता है (आदेशात्मक नहीं)।

    9. अच्छा शिक्षण छात्र व शिक्षकों के सहयोग पर आधारित होता है।

    10. अच्छा शिक्षण छात्रों के पूर्व ज्ञान पर आधारित होता है।

    11. अच्छा शिक्षण प्रगतिशील होता है। 

    12. अच्छे शिक्षण में सभी कार्यों, शिक्षण विधियों तथा दशाओं का समावेश होता है। 

    13. अच्छा शिक्षण संवेगात्मक स्थिरता उत्पन्न करता है।

    14. अच्छा शिक्षण छात्रों को वातावरण से अनुकूलन करने में सहायता देता है। 

    15. अच्छा शिक्षण निदानात्मक तथा उपचारात्मक होता है।

    16. अच्छा शिक्षण वर्तमान तथा भावी तैयारी का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। 

    17. अच्छा शिक्षण बालक की प्रसुप्त तथा प्रच्छन्न योग्यताओं का विकास करता है।

    18. उत्तम शिक्षण में शिक्षक दार्शनिक, निर्देशक तथा मित्र के रूप में कर्त्तव्य निभाता है।

    19. अच्छे शिक्षण में शिक्षक का कक्षा-व्यवहार अप्रत्यक्ष अधिक होता है और प्रत्यक्ष कम होता है।

    20. अच्छे शिक्षण में शिक्षण के व्यवहार में स्थायित्व तथा स्पष्टता होती है।

    21. अच्छे शिक्षण में छात्र शिक्षक सम्बन्ध मधुर होते हैं।

    शिक्षण की प्रकृति तथा तत्व 

    ज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहा जाता है। इसमें वे सभी क्रियाएँ तथा प्रयास आ जाते है जो सीखने में मदद करते है। इसे प्रभावित करने वाली सामाजिक प्रक्रिया माना गया है। छात्र और प्राध्यापक परस्पर प्रभावित होते हैं।

    शिक्षण की प्रकृति तथा तत्व

    मानव सभ्यता के विकास के साथ ही शिक्षण में एक व्यवसाय के रूप में जन्म लिया। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ शिक्षण की प्रक्रिया भी क्रमश: जटिल होती गयी। फलस्वरूप शिक्षण का स्वरूप भी धीरे-धीरे बदलता गया। प्रारम्भ का शिक्षण व्यवसाय Vocation से आज Profession बन गया है। 

    इसी सन्दर्भ में शिव के० मित्रा (1970) की ये पंक्तियाँ महत्त्वपूर्ण है- "Teaching was the essential act of a teacher, mainly carried out within the environment of school or college or university, or institution of society. There, the teacher does a service ((an act of teaching) to his clients (students) either individually or in groups and this he does in a formal, systematic manner...By & large, one thinks of teaching as an act of instruction in the formal situation of a classroom."

    शिक्षण के स्वरूप को स्पष्ट समझने के लिए निम्नांकित चित्र काफी लोकप्रिय हुआ है। शिक्षण अनुदेशन तथा अधिगम यद्यपि आपस मे सम्बन्धित प्रत्यय है फिर भी इनमें काफी अन्तर है। यह अन्तर पिछले पृष्ठों पर सारणी के माध्यम से स्पष्ट किया गया है। नीचे दिया गया चित्र इन तीनों प्रत्ययों म सम्बन्ध प्रदर्शित करता है।

    शिक्षण,अनुदेशन तथा अधिगम में सम्बन्ध

    चित्र--शिक्षण, अनुदेशन तथा अधिगम में सम्बन्ध

    ग्रीन (Green, 1964) ने शिक्षण की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए "Teaching Topology'' को निर्माण किया है। निम्नांकित चित्र ग्रीन के द्वारा दी गयी टोपोलोजी को प्रदर्शित करता है-

     

    प्रशिक्षिण (Training)

     

    अनुदेशन (Instruction)

     

    अनुकूलन (Conditioning)

     

    (Indocrinating)

     





    चित्र-Teaching Continuum

    उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि ग्रीन की शिक्षण प्रक्रिया में चार विशिष्ट स्तर है- 

    (1) अनुकूलन (Conditioning). 

    (2) प्रशिक्षण (Training)

    (3) अनुदेशन तथा  (Instruction)

    (4) Indoctrinating 

    इन चारों प्रत्ययों में अन्तर बहुत स्पष्ट नहीं है। ये चारों स्तर इन्द्रधनुष में विभिन्न रंगों की भाँति एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। ग्रीन का कथन है कि ''शिक्षण के स्वरूप को समझने के लिए शिक्षण के इन तत्त्वों को समझना अधिक उपयोगी है। जब हमें शिक्षण के इन तत्वों या स्तरों का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है तब हम शिक्षण के सच्चे स्वरूप को समझ पाते हैं।"

    "The concept of teaching is molecular i. e. as an activity it can best be understood not as single activity but as a whole family of activities." 

    मैक्डॉनल्ड (MacDonald 1965) ने शिक्षण के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए प्रणाली उपागम का प्रयोग किया है। उसने समस्त प्रक्रिया को चार भागों में विभाजित किया है। वे हैं- पाठ्यक्रम, अनुदेशन, शिक्षण तथा अधिगम आगे दिया गया चित्र इन चारों भागों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर रहा है। उपर्युक्त चित्र में चार प्रमुख भाग है- पाठ्यक्रम अनुदेशन, शिक्षण तथा अधिगम इस चित्र में प्रत्येक भाग कुछ दूसरे भागों के विभिन्न हिस्सों को अपने में समावेशित करते हुए दिखाई दे रहे हैं, (Overlapping)। इस चित्र में निम्नांकित क्षेत्र या स्तर दिए गये हैं-

    (i) Curriculum

    (ii) Instruction

    (iii) Teaching

    (iv) Learning

    (v) Concomitant Learning

    (vi) Teacher Modification Behaviour

    (vii) Inservice Experience 

    (viii),(ix),(x)} Pupil Teacher Planning Experiences

    मैकडॉनल्ड के द्वारा दिये गये शिक्षण के विभिन्न स्तर

    चित्र- मैकडॉनल्ड के द्वारा दिये गये शिक्षण के विभिन्न स्तर


    Small Shadowed Spot- Represents that point of congruence where curriculum goals are operative in the instructional setting through the agency of effective teaching activity as evidenced by the changed behaviour or learning of the students.

    शिक्षण के प्रकार 

    शिक्षण प्रशिक्षण लेकर अनुदेशन तक सतत प्रक्रिया मानी जाती है। विभिन्न विद्वानों ने शिक्षण को विभिन्न आधारों पर विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया है। ये वर्गीकरण नीचे प्रस्तुत किये जा रहे हैं- 

    (अ) शिक्षण के उद्देश्यों के आधार पर 

    शिक्षण के उद्देश्यों के आधार पर शिक्षण को तीन प्रमुख भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

    शिक्षण

    • ज्ञानात्मक शिक्षण 
    • भावात्मक शिक्षण 
    • मनोगत्यात्मक शिक्षण  

    (ब) शिक्षण के स्तरों के आधार पर 

    शिक्षण के स्तरों के आधार पर शिक्षण को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-

    शिक्षण

    • स्मृति स्तर 
    • बोध स्तर 
    • चिंतन स्तर 

    (स) शासन प्रणाली के आधार पर

    जैसा इस अध्याय के प्रारम्भ में बताया गया है वैसे ही शासन प्रणाली के आधार पर शिक्षण व्यवस्था निम्न तीन भागों में विभाजित की जाती है-

    शिक्षण

    • एकतन्त्रीय शिक्षण (Autocratic)
    • लोकतन्त्रीय शिक्षण (Democratic)
    • हस्तक्षेप रहित शिक्षण (Laisses Faire)

    (द) शिक्षण के स्वरूप के आधार पर

    शिक्षण के स्वरूप के आधार पर शिक्षण सामान्यतः तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है-

    शिक्षण

    • वर्णनात्मक शिक्षण (Descriptive)
    • निदानात्मक शिक्षण (Diagnostic) 
    • उपचारात्मक शिक्षण (Remmedial)

    (य) शैक्षिक क्रियाओं के आधार पर 

    शिक्षण की विभिन्न क्रियाओं के आधार पर निम्नांकित तीन पदों में विभाजित कर सकते है-

    शिक्षण

    • प्रस्तुतीकरण (Presentation)
    • प्रदर्शन (Demonstration)
    • कार्य करना (Action)

    (र) शैक्षिक व्यवस्था के आधार पर 

    शैक्षिक व्यवस्था के आधार पर शिक्षण को निम्नांकित तीन भागो में बाँटा जाता है-

    शिक्षण-

    • औपचारिक (Formal)
    • अनौपचारिक (Non-Formal)
    • निःचारिक (Informal)

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