आर्थिक प्रणाली का अर्थ, परिभाषा एवं पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

'अर्थ' अर्थात् 'धन' मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण एवं निर्णायक तत्व है। व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की प्रगति में अर्थ का सृजन करने के लिए अपनायी जाने वाली पद्धति के चुनाव के लिए मानव विकास के इतिहास में अनेक विचारधाराएँ विकसित हुई हैं। इनमें से कतिपय विचारधाराओं को व्यवहार में प्रयोग किया गया तो कतिपय केवल चिन्तन-मनन या आंशिक प्रयोग तक ही सीमित रहीं। विविध आर्थिक प्रणालियों के प्रयोग के परिणामों के आधार पर उनका मूल्यांकन एवं विश्लेषण भी किया गया तथा उनमें आवश्यक संशोधन भी हुए। आर्थिक प्रणालियों के इतिहास में घटित घटनाओं ने निरन्तर परिवर्तनों को प्रोत्साहित किया।

    आर्थिक प्रणाली का अर्थ 

    आर्थिक प्रणाली से अभिप्राय उस कार्य विधि से होता है, जिसके अन्तर्गत किसी पूर्व निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सोचने का निर्णय लेने का तथा आर्थिक क्रियाएँ सम्पन्न करने का मार्ग निर्धारित किया जाता है। ये सभी आर्थिक क्रियाएँ संगठित होकर एक आर्थिक प्रणाली की संरचना करती हैं।

    इस प्रकार आर्थिक प्रणाली का अर्थ अर्थव्यवस्था की उस वैधानिक एवं संस्थागत संरचना से है, जिसके अन्तर्गत उत्पादन, उपभोग, विनिमय एवं राजस्व आदि से सम्बन्धित आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित की जाती हैं।

    आर्थिक प्रणाली की परिभाषाएँ

    विभिन्न विद्वानों ने आर्थिक प्रणाली को भिन्न-भिन्न शब्दों में परिभाषित किया है, इनमें से कुछ परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं-

    ग्रासमैन के अनुसार- "आर्थिक संस्थाओं का समुच्चय जो किसी अर्थव्यवस्था का लक्षण होता है, उसकी आर्थिक प्रणाली बनाता है।"

    ए. जे. ब्राउन के अनुसार- "आर्थिक प्रणाली एक प्रक्रिया या क्रम है, जिसके अन्तर्गत मनुष्य आय प्राप्त करने की चेष्टा करता है।"

    प्रो. हिक्स के शब्दों में- "किसी भी स्थिति में आर्थिक प्रणाली की कल्पना उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए उत्पादकों के सहयोग के रूप में या पारस्परिक विनिमय की अवस्था के रूप में कर सकते हैं।"

    अतः उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक प्रणाली एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित उपभोग, उत्पादन, विनिमय एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय लिए जाते हैं। 

    आर्थिक प्रणाली का स्वरूप राज्य के हस्तक्षेप की मात्रा उसकी सीमा एवं सामाजिक परम्पराओं पर निर्भर करता है। इस प्रकार आर्थिक प्रणाली का सम्बन्ध किसी समाज में समस्त आर्थिक क्रियाओं के संगठन से होता है। आज विश्व के विभिन्न देशों में अलग-अलग प्रकार की आर्थिक प्रणालियाँ प्रचलित हैं। चीन तथा रूस में समाजवादी, अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस में पूँजीवादी एवं भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रणाली प्रचलित है। 

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    पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली आर्थिक गतिविधियों को स्वतन्त्र रखने तथा पूँजी की प्रधानता के विचार पर आधारित है। इस विचारधारा के अनुसार व्यवसाय के क्षेत्र में सरकार की भूमिका अप्रत्यक्ष तथा सीमित होनी चाहिए। इस आर्थिक प्रणाली में आर्थिक स्वतन्त्रता होती है, जिससे व्यवसाय में प्रतिस्पर्द्धा का विस्तार होता है। इस प्रणाली में निजी सम्पत्ति पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता, इस कारण निजी लाभ व्यवसाय की सबसे बड़ी प्रेरणा होता है। व्यवसायी अपनी प्रगति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील होते हैं। इससे तकनीकी विकास में मदद मिलती है। प्रत्येक व्यवसायी अपने व्यवसाय के चयन, विस्तार, परिवर्तन या अन्य किसी भी प्रकार के निर्णय के लिए पूरी तरह से स्वतन्त्र होता है। पश्चिमी राष्ट्रों को विगत शताब्दी में जो चमत्कारी प्रगति प्राप्त हुई है वह इसी पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली का ही परिणाम है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यह आर्थिक प्रणाली व्यवसायी की प्रेरणा बनाये रखने में सफल रही है।

    पूँजीवाद का अर्थ

    पूँजीवादी अर्थव्यवस्था या प्रणाली वह अर्थव्यवस्था है, जिसमें उत्पत्ति एवं वितरण के प्रमुख साधनों पर निजी स्वामित्व होता है और निजी व्यक्ति उन साधनों को प्रतिस्पर्धा के आधार पर अपने निजी लाभ के लिए प्रयुक्त करते हैं।

    पूँजीवाद की परिभाषाएँ

    पूँजीवाद को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है- 

    डी. एम. राइट के अनुसार- "पूँजीवाद एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें औसत तौर पर आर्थिक जीवन का अधिकांश भाग विशेषतः विशुद्ध नया विनियोग, निजी अर्थात् गैर-सरकारी इकाइयों द्वारा सक्रिय एवं पर्याप्त स्वतन्त्र प्रतिस्पर्द्धा की दशाओं के अन्तर्गत लाभ की आशा की प्रेरणा में किया जाता है।"

    लॉक्स एवं हूट के अनुसार- "पूँजीवाद आर्थिक संगठन की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें व्यक्तिगत स्वामित्व पाया जाता है और मानवकृत और प्राकृतिक साधनों को व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है।" 

    जी. डी. एच. कोल के शब्दों में- "पूँजीवाद लाभ के लिए उत्पादन की वह प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत उत्पादन के उपकरणों तथा सामग्री पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता है तथा उत्पादन मुख्य रूप से मजदूरी के श्रमिकों द्वारा किया जाता है तथा इस उत्पादन पर पूँजीपति स्वामित्व का अधिकार होता है।"

    उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि पूँजीवाद एक ऐसी प्रणाली को व्यक्त करता है, जिसमें अधिकांश श्रमिक उत्पत्ति के साधनों पर अधिकार से वंचित कर दिये जाते हैं और केवल मजदूर की श्रेणी में जीवन-यापन करते हैं। ऐसे श्रमिकों की आजीविका उनकी सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता उन मुट्ठी भर पूँजीपतियों पर निर्भर करती है जिनका उत्पत्ति के समस्त साधनों; जैसे- भूमि, पूँजी, श्रम एवं संगठन आदि पर अधिकार होता है और जो सदैव व्यक्तिगत लाभ की भावना से आर्थिक क्रियाएँ करते हैं।

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    पूँजीवाद की विशेषताएँ

    पूँजीवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

    • (1) निजी सम्पत्ति का अधिकार,
    • (2) व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता, 
    • (3) साहसी की महत्वपूर्ण भूमिका,
    • (4) समन्वय का अभाव,
    • (5) धन का अपव्यय,
    • (6) व्यापार चक्रों की उपस्थिति,
    • (7) सामाजिक कल्याण की अनुपस्थिति, 
    • (8) केन्द्रीय नियोजन का अभाव।

    (1) निजी सम्पत्ति का अधिकार 

    व्यक्तिगत सम्पत्ति एवं उत्तराधिकार का नियम पूँजीवाद का आधारभूत नियम है। पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति निजी सम्पत्ति को प्राप्त करने, अपनी इच्छानुसार व्यय करने तथा हस्तान्तरण करने के लिए स्वतन्त्र होता है। पूँजीवाद में सरकार निजी सम्पत्ति के अधिकार की सुरक्षा का दायित्व लेती है। पूँजीवाद में निजी सम्पत्ति संस्था को कानूनी मान्यता प्राप्त होती है।

    निजी सम्पत्ति को प्राप्त करने, उसे सुरक्षित रखने तथा उसके आकार में वृद्धि करने में उत्तराधिकार का नियम पूरक तत्व के रूप में कार्य करता है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं का सफल सम्पादन करने के लिए निजी सम्पत्ति एवं उत्तराधिकार दोनों का सह-अस्तित्व आवश्यक है। 

    (2) व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता 

    स्वतन्त्र पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार एवं योग्यतानुसार किसी भी व्यवसाय का चुनाव करने में पूर्ण स्वतन्त्र होता है और उस पर सरकार का किसी व्यवसाय विशेष को चुनने का प्रतिबन्ध नहीं होता है।

    (3) साहसी की महत्वपूर्ण भूमिका

    साहसी पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली के लिए हृदय का कार्य करता है। साहसी की उत्पत्ति के साधनों को एकत्रित करके अनिश्चितता की स्थिति में उत्पादन कार्य करता है। उत्पादन प्रणाली के प्रारम्भिक चरण से अन्तिम चरण तक साहसी महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह करता है।

    (4) समन्वय का अभाव 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में कीमत संयन्त्र के स्वचालित होने के कारण तथा उपभोक्ता की प्रभुसत्ता के कारण उत्पत्ति क्रिया में आदर्श सामंजस्य बनाये रखना सम्भव नहीं हो पाता है। व्यक्ति विशेष अपने ही विवेक से अपनी आर्थिक क्रिया का सम्पादन करता है। उसकी इस क्रिया में किसी केन्द्रीय निर्देशन की उपस्थिति नहीं होती, जिसके कारण व्यक्तिगत हित सर्वोपरि हो जाता है। इसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में असंख्य व्यक्तियों की स्वयं हित वाली आर्थिक क्रियाओं में कोई सामंजस्य नहीं हो पाता तथा वे परस्पर प्रतिस्पर्धी बन जाती हैं।

    (5) धन का अपव्यय

    पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत प्रतिस्पर्धा होने के कारण प्रत्येक पूँजीपति अधिकतम धन एकत्रित करने के उद्देश्य से न केवल पुराने उद्योगों का विस्तार करता है बल्कि साथ ही साथ नये-नये उद्योगों की स्थापना भी करता है। प्रत्येक पूँजीपति द्वारा अधिकतम धन एकत्रित करने की उत्पादकों के मध्य पारस्परिक स्पर्धा को तीव्र कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकों को प्रचार एवं विज्ञापन पर अधिक व्यय करना पड़ता है, जो एक प्रकार से धन का अपव्यय है।

    (6) व्यापार चक्रों की उपस्थिति

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादक वर्ग एवं उपभोक्ता वर्ग की आर्थिक स्वतन्त्रताओं के कारण व्यापार चक्र की उपस्थिति एक अनिवार्य दशा बन जाती है। पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में अति उत्पादन तथा कम उत्पादन की स्थितियों से इन्कार नहीं किया जा सकता है। कीमत संयन्त्र अपनी स्वतः प्रक्रिया द्वारा इन असामान्य स्थितियों को सन्तुलित करने का प्रयास करता है किन्तु अर्थव्यवस्था में उत्पादन स्तर पर अल्पकालीन उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और व्यापार चक्रों का जन्म होता है।

    (7) सामाजिक कल्याण की अनुपस्थिति 

    पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से होता है और सामाजिक कल्याण का उद्देश्य मौन रहता है। उत्पादक उत्पादन प्रक्रिया में केवल अपने आय अर्जन के उद्देश्य को ही ध्यान में रखता है तथा उस वस्तु के उत्पादन से होने वाली सामाजिक हानि पर विचार नहीं करता है। इस तरह पूँजीवादी प्रणाली में सामाजिक कल्याण की भावना अनुपस्थित रहती है।

    (8) केन्द्रीय नियोजन का अभाव

    एक स्वतन्त्र पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन का अभाव होता है। पूँजीवादी प्रणाली में आर्थिक गतिवधियों पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता है और वे अपने स्वाभाविक क्रम में संचालित होती रहती हैं। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पत्ति के संसाधनों, मानवीय एवं भौतिक संसाधनों को अनियोजित रखने की प्रवृत्ति अन्तर्निहित होती है। पूँजीवाद में असंख्य उपभोक्ता एवं उत्पादक स्वतन्त्र रूप से अपने हितों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक क्रियाएँ सम्पन करते हैं।

    पूँजीवादी प्रणाली के गुण या लाभ

    पूँजीवाद में प्रतिस्पर्धा, निजी सम्पत्ति का अधिकार एवं निजी लाभ आदि ऐसे तत्व हैं, जिनके कारण उत्पादन में कुशलता आती है, तकनीकी प्रगति होती है तथा व्यक्ति को पूर्ण रूप से विकास करने का अवसर मिलता है। पूँजीवादी प्रणाली के प्रमुख लाभ या गुण निम्नलिखित हैं-

    1. व्यक्तित्व का विकास, 
    2. योग्यतानुसार पुरूस्कार, 
    3. उत्पादन में प्रोत्साहन, 
    4. लचीलापन, 
    5. स्वसंचालित, 
    6. तकनीकी विकास, 
    7. पूंजी निर्माण को प्रोत्साहन, 
    8. आर्थिक विकास की दर में वृद्धि। 

    (1) व्यक्तित्व का विकास 

    पूँजीवादी प्रणाली में पूर्ण प्रतियोगिता के कारण योग्यतम की विजय होती है, अतः प्रत्येक व्यक्ति कड़े प्रयत्न करता है, अपनी योग्यता बढ़ाता है, इससे लोगों को स्वतन्त्र आर्थिक वातावरण में अपना सर्वांगीण विकास करने का अवसर मिलता है। यही कारण है कि उनको योग्यता के अनुसार ही प्रतिफल मिलता है।

    (2) योग्यतानुसार पुरस्कार 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में योग्यता एवं कार्यकुशलता से समुचित रूप से पुरस्कृत किया जाता है। योग्य एवं अधिक दक्ष श्रमिकों को अत्यधिक पारिश्रमिक देकर पुरस्कृत किया जाता है। इस प्रकार पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में प्रेरणा की उपस्थिति श्रमिकों को अपनी दक्षता, योग्यता एवं कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

    (3) उत्पादन में प्रोत्साहन 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली प्रोत्साहनमूलक है, जिसके अन्तर्गत उत्पत्ति के क्रियाशील साधनों को उत्साह प्रदान किया जाता है। उद्यमी के लिए उत्पादन का लाभ एक महत्वपूर्ण उत्साहमूलक तत्व है। इसके अतिरिक्त, व्यक्तिगत लाभ का उद्देश्य, जो पूँजीवाद की एक आधारभूत विशेषता है, एक सबल प्रोत्साहनमूलक तत्व है।

    (4) लचीलापन 

    पूँजीवादी आर्थिक पूँजीवादी प्रणाली के गुण या लाभ प्रणाली में लचीलेपन की विशेषता ही संसाधनों का पारस्परिक प्रतिस्थापन करके संसाधनों के अनुकूलतम प्रयोग को सम्भव बनाती है। इस प्रणाली के लचीलेपन के कारण ही उत्पत्ति के साधनों में गतिशीलता उत्पन्न होती है तथा साधन कम लाभप्रद क्षेत्रों से स्थानान्तरित होकर अधिक लाभप्रद क्षेत्रों में क्रियाशील होते हैं। 

    (5) स्वसंचालित 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली स्वयं संचालित होती है और उसमें किसी प्रकार के सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सन्तुष्टि के अनुसार आर्थिक क्रियाओं को सम्पन्न करने का पूर्ण अधिकार होता है। व्यक्ति इस प्रणाली में स्वयं हित के उद्देश्य से क्रियाशील होता है तथा उसे अपनी इच्छानुसार अपनी आय तथा अपने संसाधनों को अपने स्वयं के विवेक से प्रयोग करने का पूर्ण अधिकार होता है।

    (6) तकनीकी विकास

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में तकनीकी विकास की सम्भावनाएँ सदैव उपस्थित रहती हैं। इस प्रणाली में उत्पादक अधिकतम लाभ के उद्देश्य से सदैव नई-नई उत्पादन तकनीकों को विकसित करने के लिए प्रयासरत रहता है तथा आविष्कार एवं अनुसन्धान उसकी आर्थिक क्रियाओं का अभिन्न अंग बन जाते है। इससे तकनीकी प्रगति होती है।

    (7) पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में व्यक्तिगत सम्पत्ति का अधिकार एवं उत्तराधिकार के नियम के कारण बचत करने की प्रेरणा को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे विनियोग एवं पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है तथा उत्पादन भी प्रोत्साहित होता है। 

    (8) आर्थिक विकास की दर में वृद्धि 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में बचत, विनियोग एवं पूँजी निर्माण की दर अधिक होने के कारण विकास की दर तीव्र गति से बढ़ती है। पूँजीपति को अपने लाभ को अधिक करने की कोशिश में पूर्ण दक्षता एवं कुशलता में वृद्धि करके उत्पादकता में वृद्धि का प्रयास करते हैं। तकनीकी सुधार नव प्रवर्तन एवं श्रम विभाजन आदि के कारण पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन में निरन्तर वृद्धि होती रहती है जिससे अर्थव्यवस्था में विकास की दर को प्रोत्साहन मिलता है।

    पूँजीवादी प्रणाली के दोष या अवगुण

    यद्यपि पूँजीवादी प्रणाली में अनेक गुण उपस्थित होते हैं तथापि इन गुणों की वास्तविकता व्यवहार में नहीं होती, जिसके कारण पूँजीवाद में आत्मघाती प्रवृत्ति है। पूँजीवाद में इन दोषों के कारण ही समाजवाद का मार्ग प्रशस्त हुआ है। पूँजीवाद के कुछ प्रमुख दोष या अवगुण निम्नलिखित हैं-

    1. बेरोजगारी का भय, 
    2. अनियोजित उत्पादन, 
    3. आर्थिक असमानता, 
    4. उत्पत्ति के साधनों का अपव्यय, 
    5. वर्ग संघर्ष, 
    6. एकाधिकार प्रवत्ति का उदय, 
    7. प्रचुरता में निर्धनता, 
    8. सामाजिक कल्याण की अनुपस्थित। 

    (1) बेरोजगारी का भय

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में पूर्ण रोजगार स्तर पर अर्थव्यवस्था को काफी लम्बे समय तक बनाये रखना सम्भव नहीं होता है। अतः लाभ की इच्छा में जब उद्यमी उत्पादन करते चले जाते हैं तब अत्यधिक उत्पादन की समस्या उत्पन्न होती है जिसके कारण उद्यमी उत्पादन का संकुचन करते हैं। इसके परिणामस्वरूप बेकारी एवं गरीबी की समस्या उत्पन्न होती है।

    (2) अनियोजित उत्पादन

    केन्द्रीयकृत नियोजन की अनुपस्थिति के कारण पूँजीवादी प्रणाली में उत्पादन अनियोजित रहता है। प्रतिस्पर्धा के कारण प्रत्येक उत्पादक अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने का प्रयास करता है जिसके कारण अर्थव्यवस्था में अत्यधिक उत्पादन करने की स्थिति पैदा होती है। तथा व्यापार चक्र उपस्थित होते हैं जो अर्थव्यवस्था की  असन्तुलित दशाओं की सूचना देते हैं। 

    (3) आर्थिक असमानता

    पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सम्पत्ति की असमानता एवं उसका स्वतन्त्र उपयोग, अवसरों की असमानता तथा राष्ट्रीय आय के वितरण में असमानता को जन्म देता है। उत्तराधिकार एवं स्वतन्त्र मूल्य-यन्त्र सम्पत्ति तथा धन के वितरण में असमानता को और बढ़ाते हैं, जिससे समाज में उत्पादन एवं वितरण का सम्पूर्ण ढाँचा ही बिगड़ जाता है। देश की सम्पूर्ण समृद्धि कुछ ही हाथों में केन्द्रित हो जाती है। इस प्रकार धनी व्यक्ति और अधिक धनवान तथा गरीब व्यक्ति और अधिक गरीब हो जाते हैं।

    (4) उत्पत्ति के साधनों का अपव्यय 

    पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली में प्रतियोगिता के कारण उत्पत्ति के साधनों का एक बहुत बड़ा भाग विज्ञापन तथा प्रचार प्रसार में व्यय कर दिया जाता है। इसके साथ ही प्रतियोगी फर्मों प्रतियोगिता के कारण वस्तुओं का अनावश्यक उत्पादन कर लेती है, जिससे अनेक बार अत्यधिक उत्पादन की समस्या उत्पन्न हो जाती है और उत्पत्ति के साधनों का अनावश्यक अपव्यय होता है।

    (5) वर्ग-संघर्ष 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में आर्थिक असमानताएँ सामाजिक अशान्ति उत्पन्न करती है। आर्थिक आधार पर समाज दो वर्गों में विभक्त हो जाने के कारण सामाजिक शोषण उत्पन्न होता है जो वर्ग संघर्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

    (6) एकाधिकारी प्रवृत्ति का उदय 

    पूँजीवादी प्रणाली में पूर्ण प्रतियोगिता की उपस्थिति अपरिहार्य होने के कारण एकाधिकारी प्रवृत्तियों का बढ़ना पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर होता है। एकाधिकारी प्रवृत्तियों का बढ़ना उत्पादकों के मध्य गलाकाट प्रतियोगिता का परिणाम है, जिसमें प्रत्येक उत्पादक अपने प्रतिद्वन्द्वी को उत्पादन प्रक्रिया से बाहर निकालने एवं बाजार पर अधिक आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास करता है। एकाधिकारी प्रवृत्तियों के बढ़ने से अर्थव्यवस्था में अनेक अवांछनीय परिणाम उपस्थित होते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अधिकतम सन्तुष्टि पर आघात पहुँचता है।

    (7) प्रचुरता में निर्धनता

    पूँजीवाद में प्रचुरता में निर्धनता का विरोधाभास पनपता है। जब अर्थव्यवस्था में अति उत्पादन के कारण बेरोजगारी फैलती है तो श्रमिकों की क्रय शक्ति समाप्त हो जाती है। ऐसी अवस्था में वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हुए भी क्रय शक्ति के अभाव में उसका उपयोग सम्भव नहीं होता है।

    (8) सामाजिक कल्याण की अनुपस्थिति 

    पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में निजी लाभ के उद्देश्य की पूर्ति में सामाजिक कल्याण की बलि दे दी जाती है। देश में साधनों का प्रयोग कुछ धनवानों के लिए विलासिता की वस्तुओं के निर्माण में होता है, जबकि निर्धनों की अनिवार्यता की उपेक्षा की जाती है। धनवानों को बहुमूल्य शराब भवन एवं अच्छे कपड़े मिलते हैं किन्तु निर्धनों को रोटी भी नसीब नहीं होती है। अतः पूँजीवाद में सामाजिक कल्याण एवं अधिकतम सन्तुष्टि एक मिथ्या धारणा है।


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