मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है || मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ,परिभाषा

मिश्रित अर्थव्यवस्था

जहाँ एक ओर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में गलाघोंट प्रतियोगिता से अपव्यय, व्यापार चक्रों के कारण बेरोजगारी तथा आर्थिक अस्थिरता तथा वर्ग संघर्ष एवं शोषण की परिस्थितियों में राजकीय हस्तक्षेप आवश्यक समझा जाने लगा, वहीं दूसरी ओर समाजवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन, नौकरशाही और सत्ता के केन्द्रीकरण से अत्यधिक राजकीय हस्तक्षेप भी लोगों को खटकने लगा।

    अतः एक ऐसी आर्थिक प्रणाली का विकास हुआ, जिसमें पूँजीवाद एवं समाजवाद के गुणों का सम्मिश्रण कर दोनों के दोषों का निराकरण करने का प्रयास किया जाता है। आज विश्व के अधिकांश विकासशील राष्ट्र इसी आर्थिक प्रणाली को अपना रहे हैं।

    मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवादी एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था का एक समन्वित रूप है। यह पूर्णतः स्वतन्त्र समाजवादी आर्थिक प्रणालियों के बीच का सौहार्दपूर्ण संयोग है। पूँजीवादी एवं समाजवादी दोनों आर्थिक प्रणालियों के अपने-अपने गुण-दोष है भूतपूर्व प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दोनों प्रणालियों के दुर्गुणों से बचने और गुणों से लाभ उठाने के लिए दोनों प्रणालियों को आंशिक रूप में अपनाया। इसीलिए इसे मिश्रित आर्थिक प्रणाली कहते हैं। जिन क्षेत्रों का सम्बन्ध समाज के निम्न वर्ग से है या जो संरचनात्मक विकास से सम्बन्धित है उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में तथा शेष सामान्य व्यवसाय को निजी क्षेत्र में रखकर दोनों प्रणालियों का लाभ लेने का प्रयत्न किया जाता है। इस प्रणाली में केन्द्रीकृत नियोजन प्रणाली और स्वतन्त्र व्यवसाय दोनों का लाभ मिलने की सम्भावना प्रबल रहती है। 

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    मिश्रित अर्थव्यवस्था की परिभाषाएँ

    मिश्रित अर्थव्यवस्था को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है- 

    भारतीय योजना आयोग के अनुसार- "मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं तथा दोनों एक इकाई के दो घटकों के रूप में कार्य करते हैं। "

    प्रो. खुसरो के मतानुसार- "एक मिश्रित अर्थव्यवस्था दो महत्वपूर्ण रूपों में मिश्रित होती है- 

    (i) इसमें उत्पादन के साधनों-पूँजीगत सामान तथा रोजगार में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का मिश्रण होता है।

    (ii) इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजारों में स्वतन्त्र एवं नियन्त्रित बाजारों का मिश्रण होता है। 

    अतः उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र एक साथ पूरक तत्वों के रूप में कार्य करते हैं। दोनों क्षेत्रों का कार्य क्षेत्र सरकार द्वारा निर्धारित कर दिया जाता है। सामाजिक हित में सरकार निजी क्षेत्र की क्रियाओं में भी प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र सरकार की नीतियों द्वारा नियन्त्रित होता है।

    मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं- 

    • (1) सामाजिक सुरक्षा,
    • (2) आर्थिक नियोजन,
    • (3) लाभ, उद्देश्य एवं कीमत यन्त्र,
    • (4) आर्थिक समानता एवं सामाजिक न्याय, 
    • (5) लोकतान्त्रिक व्यवस्था,
    • (6) आर्थिक स्वतन्त्रता,
    • (7) सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का सह-अस्तित्व ।

    (1) सामाजिक सुरक्षा 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकार सामाजिक सुरक्षा पर विशेष ध्यान देती है। इसके अन्तर्गत वृद्धावस्था पेन्शन, बेरोजगारी भत्ता, दुर्घटना एवं मृत्यु बीमा आदि के द्वारा सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।

    (2) आर्थिक नियोजन 

    यह मिश्रित अर्थव्यवस्था की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है। नियोजन के अभाव में किसी भी अर्थव्यवस्था को मिश्रित नहीं कहा जा सकता, चाहे उसमें राज्य का नियन्त्रण एवं हस्तक्षेप भले ही हो। मिश्रित अर्थव्यवस्था में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का संचालन तथा नियोजन एक केन्द्रीय नियोजन सत्ता द्वारा योजनाबद्ध ढंग से होता है।

    (3) लाभ, उद्देश्य एवं कीमत यन्त्र

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में दोनों के सामाजिक हितों को इस प्रकार नियन्त्रित किया जाता है। कि साधनों का वितरण तीव्र आर्थिक विकास एवं अधिकतम सामाजिक कल्याण के अनुरूप हो। 

    (4) आर्थिक समानता एवं सामाजिक न्याय

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में यद्यपि निजी सम्पत्ति, उत्तराधिकार का नियम एवं आर्थिक स्वतन्त्रताएँ पायी जाती हैं फिर भी समाज में आर्थिक विषमताओं को दूर करने के लिए सरकार आर्थिक एवं राजकोषीय नीतियों के द्वारा धनी व्यक्तियों की बढ़ती सम्पत्ति के आकार को नियन्त्रित करती है तथा इसके साथ ही सरकार कर आदि के द्वारा धनी व्यक्तियों से आय अर्जित कर निर्धन वर्ग के लिए आवश्यक सुविधाएँ समाज में उत्पन्न करती हैं। इस प्रकार निर्धन वर्ग को सुविधाएँ देकर सामाजिक न्याय की भावना के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती है। 

    (5) लोकतान्त्रिक व्यवस्था 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था पर आधारित होती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं का निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में विभाजन, नीतियों का निर्धारण, लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का निर्धारण एवं संसाधनों का आवंटन आदि सभी की स्वीकृति जनप्रतिनिधियों द्वारा की जाती है,इस प्रकार मिश्रित अर्थव्यवस्था का संचालन लोकतान्त्रिक प्रणाली के आधार पर किया जाता है।

    (6) आर्थिक स्वतन्त्रता

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्वतन्त्रताओं की समाजवाद की तरह पूर्ण अनुपस्थिति नहीं होती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्वतन्त्रताएँ तो होती हैं किन्तु पूँजीवाद की तुलना में कम होती हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में सामाजिक हित एवं कल्याण को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत उद्यमियों को सीमित आर्थिक स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाती हैं।

    (7) सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का सह-अस्तित्व 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूँजीवाद एवं समाजवाद दोनों प्रणालियों की विशेषताओं को सम्मिलित करके अर्थव्यवस्था के संचालन के लिए एक मध्यम मार्ग अपनाया जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र दोनों अपने निर्धारित कार्यों को सरकारी निर्देशन में करते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी विचार के आधार पर श्रमिकों, व्यक्तिगत सम्पत्ति, व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता एवं प्रोत्साहन आदि के अधिकार दिये जाते हैं तथा समाजवादी विचार के आधार पर आर्थिक नियोजन, सार्वजनिक क्षेत्र उपस्थिति, राष्ट्रीय हित के लिए आवश्यक कार्यों एवं संसाधनों पर सरकारी नियन्त्रण आदि की विशेषताएँ पायी जाती हैं। आधुनिक समय में मिश्रित अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक क्षेत्रों के अलावा संयुक्त क्षेत्र और सहकारी क्षेत्र का भी समावेश हुआ है, जिसमें व्यक्तिगत उद्यमी एवं सरकार दोनों सह उद्यमियों के रूप में क्रियाओं का संचालन करते हैं।

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    मिश्रित अर्थव्यवस्था का महत्व, गुण एवं लाभ

    मिश्रित अर्थव्यवस्था एक लचीली अर्थव्यवस्था है, जिसमें पूँजीवाद एवं समाजवाद के गुणों को अर्थव्यवस्था के उचित संचालन में आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रमुख लाभ या गुण निम्नांकित हैं-

    • (1) मानव संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग,
    • (2) स्वतन्त्रता एवं प्रेरणा की उपस्थिति,
    •  (3) आर्थिक विकास की तीव्र गति,
    • (4) सामाजिक कल्याण में वृद्धि,
    • (5) आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण,
    • (6) आर्थिक विषमताओं पर रोक।


    (1) मानव संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार आर्थिक नियोजन है, जिसमें देश के मानव संसाधनों की पूर्ति को ध्यान में रखकर उत्पादन प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में मानव पूँजी निर्माण द्वारा अर्थात् व्यक्ति की दक्षता, योग्यता एवं शिक्षा में सुधार करके तथा प्रशिक्षित करके मानव संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग किया जाता है। 

    (2) स्वतन्त्रता एवं प्रेरणा की उपस्थिति   

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत लाभ एवं स्थायित्व का अधिकार होने के कारण उत्पादकों के लिए पर्याप्त प्रेरणा उपस्थित रहती है। इस अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता को अपनी आय को अपनी इच्छानुसार व्यय करने की पर्याप्त स्वतन्त्रता रहती है। इस तरह मिश्रित अर्थव्यवस्था में उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों को ही पर्याप्त स्वतन्त्रता एवं प्रेरणाएँ प्राप्त होती हैं।

    (3) आर्थिक विकास की तीव्र गति 

    आज के समय में मिश्रित अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास की तीव्र गति के लिए आवश्यक प्रणाली बन गयी है। इस अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन अपनाकर साधनों का अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अनुकूलतम आबंटन किया जाता है, जो आर्थिक विकास की तीव्र गति को सुनिश्चित करता है। 

    (4) सामाजिक कल्याण में वृद्धि 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का नियन्त्रण एवं संचालन सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण के उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया जाता है। इस प्रकार सरकार व्यक्तिगत क्षेत्र का विभिन्न नीतियों के द्वारा नियमन करके समाज में व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के शोषण की सम्भावना को समाप्त करती है।

    (5) आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकार की निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों पर पूरी तरह से नियन्त्रण होता है। सरकार अपनी विभिन्न नीतियों द्वारा निजी क्षेत्र की क्रियाओं को सामाजिक हित के उद्देश्य को ध्यान में रखकर समाजवादी शक्तियों को देश की आर्थिक शक्ति का कुछ व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रीकरण नहीं हो पाता है।

    (6) आर्थिक विषमताओं पर रोक 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में यद्यपि निजी सम्पत्ति, उत्तराधिकार के नियम और आर्थिक स्वतन्त्रताएँ पायी जाती हैं तथापि समाज की आर्थिक विषमताओं में कमी के लिए सरकार आर्थिक एवं राजकोषीय नीतियों द्वारा धनी व्यक्तियों की सम्पत्ति के आकार को नियन्त्रित करती है तथा निर्धन वर्ग को इनके कर के माध्यम से उचित सुविधाएँ उपलब्ध करवाती हैं।

    मिश्रित अर्थव्यवस्था के दोष

    यद्यपि मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूँजीवाद तथा समाजवाद के सभी गुणों का सम्मिश्रण एवं समन्वय किया जाता है, जिससे उनसे अधिकतम कल्याण सम्भव हो सके परन्तु पूँजीवादी कारक जब इन पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेते हैं तब शोषण, तानाशाही एवं नौकरशाही की कुशलताओं की वृद्धि से व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन होता है। 

    अतः मिश्रित अर्थव्यवस्था में कुछ दोष एवं अवगुण भी पाये जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख अग्रलिखित हैं-

    • (1) अस्थिरता,
    • (2) राष्ट्रीयकरण का भय, 
    • (3) लालफीताशाही को बढ़ावा,
    • (4) लोकतन्त्र को खतरा,
    • (5) व्यावहारिकता में कमजोर। 

    (1) अस्थिरता

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकारी नीतियाँ अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करती हैं। सरकारी नीतियाँ स्थायी नहीं होती हैं तथा सरकार समय-समय पर औद्योगिक नीति द्वारा निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र का विभाजन करती रहती है, जिसके कारण अर्थव्यवस्था में अस्थिरता बनी रहती है।

    (2) राष्ट्रीयकरण का भय

    मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को सरकारी राष्ट्रीयकरण का भय हमेशा बना रहता है। इस भय के कारण व्यक्तिगत उद्यमी में विनियोग के प्रति विशेष रुचि एवं प्रेरणा उत्पन्न नहीं हो पाती है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीयकरण का भय विदेशी उद्यमियों को भी अपनी पूँजी विनियोग करने से रोकता है तथा इसके परिणामस्वरूप देश की आर्थिक विकास की प्रक्रिया तीव्र नहीं हो पाती है।

    (3) लालफीताशाही को बढ़ावा

    मिश्रित अर्थव्यवस्था का संचालन सरकार तथा उसके प्रशासन तन्त्र द्वारा किया जाता है। लालफीताशाही एवं अफसरशाही से अनेक बार अच्छी योजनाओं का उचित एवं समयबद्ध क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। इस प्रकार लालफीताशाही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।

    (4) लोकतन्त्र को खतरा 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था के दोनों क्षेत्रों में सरकारी नियमन होने के कारण समाजवादी शक्तियों को प्रबल होने का खतरा अर्थव्यवस्था में हमेशा बना रहता है। इस प्रकार मिश्रित अर्थव्यवस्था में लोकतन्त्र सदैव चिरस्थायी बना रहेगा, यह सम्भव-सा नहीं लगता है।

    (5) व्यावहारिकता में कमजोर 

    मिश्रित अर्थव्यवस्था का सैद्धान्तिक पक्ष कितना भी मजबूत क्यों न हो किन्तु फिर भी व्यावहारिकता में एक कमजोर आर्थिक नीति है क्योंकि मिश्रित अर्थव्यवस्था में कीमत यन्त्र न तो पूँजीवाद की तरह पूरी तरह से क्रियान्वित हो पाता है और न ही समाजवाद की तरह पूर्ण रूप से अनुपस्थित रहता है। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था का कुशलता से संचालन नहीं हो पाता है और निजी क्षेत्र के कीमत यन्त्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र के नियोजन के बीच सामंजस्य का अभाव उपस्थित हो जाता है।

    इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि मिश्रित अर्थव्यवस्था में अकुशलता एवं तानाशाही का भय रहता है किन्तु फिर भी आर्थिक नियोजन, सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के सह-अस्तित्व तथा सामंजस्य से अत्यधिक आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। सरकार की प्रभावशाली नियन्त्रण की नीतियों से व्यापार चक्रों, बेरोजगारी, शोषण तथा वर्ग संघर्ष को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है, जिससे सामाजिक कल्याण में वृद्धि होती है। भारत में इस मिश्रित अर्थव्यवस्था को आर्थिक विकास का आधार बनाया गया है, जिससे निजी उपक्रमों को सामूहिक हित से जोड़ा जा सके। इसका एक मुख्य कारण भारत का दीर्घकालीन उद्देश्य लोकतान्त्रिक समाजवाद की स्थापना है। 

    अतः धीरे-धीरे सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है और निजी क्षेत्र को सीमित किये जाने के प्रयास निरन्तर जारी हैं, इसलिए आधुनिक प्रवृत्ति मिश्रित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है।

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