एकाकी व्यापार के सामाजिक तथा आर्थिक महत्व की विवेचना कीजिये

एकाकी व्यापार का सामाजिक महत्व

एकाकी व्यापार का सामाजिक महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है-

(1) अवसर की समानता- विश्व के सभी देश समाजवादी समाज की स्थापना में लगे हैं। इस समाजवादी समाज में अवसर की समानता होना आवश्यक है। एकल नियन्त्रण में सभी को पूरी स्वतन्त्रता होती है।

(2) आर्थिक समानता पर रोक- एकल व्यापार में व्यवसायों का केन्द्रीकरण केवल कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में नहीं हो पाता; अतः कुछ ही व्यक्तियों के पास पूँजी का संचय नहीं होता।इस व्यवस्था में व्यक्ति को स्वेच्छा से कार्य करने की स्वतन्त्रता होती है। वह अपनी योग्यता के अनुसार व्यवसाय चुनता है। तथा अपने परिश्रम से लाभ कमाता है। यदि ऐसा न होता तो पूँजी कुछ बड़े-बड़े व्यक्तियों के हाथों तक ही सीमित हो जाती।

(3) अधिक शिक्षा की आवश्यकता न होना- व्यावहारिक व्यवसाय की शिक्षा, स्कूल नियन्त्रण में बिना पढ़े-लिखे व्यक्ति भी प्राप्त कर सकते हैं। वे व्यापार-वाणिज्य का कुछ न कुछ व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर ही लेते हैं। व्यावसायिक संस्थाएँ एक प्रकार से प्रशिक्षण संस्थान होती हैं। इन व्यवसायों में जोखिम कम होती है। इस कारण प्रयोग और भूल के आधार पर व्यक्ति को व्यापार का अच्छा ज्ञान हो जाता है।

(4) उत्तरदायित्व की भावना- एकल नियन्त्रण में उत्तरदायित्व की भावना सरलता से पैदा होती है। आज समाज को जिम्मेदारी, उत्साह तथा आत्मविश्वास आदि गुणों की आवश्यकता होती है।

(5) रोजगार में वृद्धि- एकाकी व्यापार को चलाने में विशेष अनुभव, शिक्षा और अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती, अतः प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार मिल जाता है। यह व्यवस्था समाज में कला, कुटीर उद्योग आदि की रक्षा करके अधिक व्यक्तियों को रोजगार की सुविधा देती है।

(6) व्यवसाय का विकेन्द्रीकरण- एकाकी व्यवसायी जहाँ चाहे, अपनी इच्छा से व्यापार प्रारम्भ कर सकता है। वह अपनी दुकान या व्यवसाय जहाँ चाहे, स्थापित कर सकता है। इससे व्यवसाय का केन्द्रीकरण न होकर विकेन्द्रीकरण होता है।

(7) कुछ व्यवसायों के लिए अधिक उपयुक्त- कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं, जिनमें कम पूँजी व कम प्रबन्ध चातुर्य की आवश्यकता होती है। ऐसे व्यवसायों के लिए यह संगठन सर्वोत्तम रहता है।

(8) स्पर्द्धा का लाभ- एक ही स्थान पर अनेक एकाकी व्यापारियों की दुकानें होती हैं जोकि परस्पर प्रतिस्पर्द्धा खते हैं, परिणामस्वरूप वस्तुएँ सस्ती एवं अच्छी उपलब्ध हो जाती हैं। प्रतियोगिता में वही व्यापार सफल हो सकता है, जो समाज की आवश्यकताओं को ठीक से पूरी करके उचित लाभार्जन करे। यह स्पर्द्धा उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों के लिए ही हितकर होती है।

(9) उपभोक्ताओं की सेवा- एकाकी व्यापारी उपभोक्ताओं के निकट पहुँचने की इच्छा के कारण उस स्थान पर अपनी दुकान खोलता है, जहाँ जनसंख्या अधिक होती है। । वह उपभोक्ताओं को कम से कम मूल्य पर वस्तुएँ उपलब्ध कराता है, उन्हें क्रय सम्बन्धी कठिनाइयों से मुक्त रखता है, उन्हें उधार की सुविधा देता है और उन्हें हर प्रकार से सन्तुष्ट करने का प्रयास करता है।

(10) वितरण प्रणाली को सुगम बनाना- एकल व्यापारी, निर्माताओं तथा उपभोक्ताओं दोनों से सम्बन्ध रखते है, जिससे वितरण प्रणाली सुगम बन जाती है। ।

(11) सामाजिक साधनों का सदुपयोग- एकाकी व्यवसाय में प्रयत्न तथा प्रतिफल में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होने के कारण समाज के साधनों का मितव्ययितापूर्ण और उत्तम प्रयोग करना सम्भव होता है।

(12) योग्यता व कुशलता दिखाने का अवसर- एकाकी व्यावसायिक संगठन के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता व कुशलता दर्शाने का अवसर प्राप्त होता है।

(13) कुछ महत्त्वपूर्ण गुणों का विकास- एकाकी व्यवसाय के संचालन हेतु प्रबन्ध-कुशलता, निर्भीकता, धैर्य, उत्साह, आत्मविश्वास तथा उत्तरदायित्व आदि गुणों की आवश्यकता होती है। एकाकी व्यापार में इन गुणों का स्वतः विकास होता है।

प्रो० हैने के शब्दों में- "अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ इस बात को नहीं भूल सकते कि आत्मविश्वास, उत्तरदायित्व और पहल करने की क्षमता आदि गुणों का आज के समाज में अत्यधिक महत्व है; और इन गुणों का विकास एकाकी व्यवसाय में निहित है।"

एकाकी व्यापार के आर्थिक महत्व

एकाकी व्यापार का आर्थिक महत्त्व निम्नलिखित प्रकार से बताया जा सकता है-

(1) इसके अन्तर्गत पूँजी तथा व्यवसाय का विकेन्द्रीकरण होता है।

(2) इससे बेकारी की समस्या दूर होती है।

(3) इसके द्वारा विपणन की कठिनाइयाँ कम होती हैं तथा उपभोक्ता की रुचि के अनुसार सेवा होती है। साथ ही उपभोक्ता अपने धन का सर्वोत्तम उपयोग कर सकता है।

(4) इसके अन्तर्गत प्रतियोगिता के कारण स्वतः ही मूल्य-नियन्त्रण होता है तथा माल की किस्म सुधारने को भी प्रोत्साहन मिलता है।

(5) इसके द्वारा कम पूँजी तथा सीमित कार्यक्षमता वाले व्यक्ति भी सुचारु रूप से अपनी जीविका चला सकते हैं।

(6) इसके माध्यम से कुटीर तथा गृह उद्योगों का विकास हो सकता है।

(7) एकाकी व्यापार में व्यक्तिगत हित तथा असीमित दायित्व के उत्तरदायित्व निभाने तथा धन व कार्यक्षमता का सोच-समझकर उपयोग करने की प्रेरणा मिलती है।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि "एकाकी व्यापार असभ्यता के युग का प्रतीक नहीं है वरन आधुनिक युग में सीमित बाजारों का प्राण तथा बड़े संगठनों के दोषों से मुक्त सर्वश्रेष्ठ संगठन का स्वरूप है।"

Post a Comment

Previous Post Next Post