विश्व व्यापार संगठन - आशय, उद्देश्य, विशेषतायें, कार्य, संगठन की संरचना एवं समझौता

विश्व व्यापार संगठन

सन् 1944 में ब्रेटनबुड्स सम्मेलन के अन्तर्गत, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक की स्थापना के साथ ही विश्व के देशों में परस्पर व्यापार सहयोग स्थापित हो, इसलिए एक अन्तर्राष्ट्रीय या विश्व व्यापार संगठन की स्थापना पर भी बल दिया गया था। सन् 1946 में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक की स्थापना हो गयी। किन्तु व्यापार के विकास के लिए अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण संगठन व्यापार एवं प्रशुल्क पर सामान्य ठहराव को स्थापना 30 अक्टूबर, 1947 को हो सकी। इस संगठन का मूल उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में आने वाली बाधाओं तथा समस्याओं को पारस्परिक समझौते से कम करना था।

    विश्व व्यवसाय की वैधानिक व्यवस्थाओं, निर्णयों तथा नीतियों के क्रियान्वयन में शीघ्रता लाने तथा प्रभावशाली बनाने के दृष्टिकोण से मराकेश (मोरक्को) में विश्व के 123 देशों के व्यापार मन्त्रियों के सम्मेलन में उरुग्वे राउण्ड में डंकल प्रस्तावों की लोकप्रियता के आधार पर पर विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया, जिसे अपेक्षाकृत गैट से, कहीं अधिक अधिकार प्राप्त थे। इसने अपना कार्य 1 जनवरी, 1995 से प्रारम्भ किया। भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य है। विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों की संख्या 159 है।

    विश्व व्यापार संगठन का आशय 

    विश्व व्यापार संगठन सदस्य राष्ट्रों के मध्य व्यापार को प्रोत्साहित करने तथा परस्पर व्यापार प्रतिबन्ध को समाप्त कर सुदृढ़ व्यापार सिद्धान्तों के आधार पर कार्य करने वाली संस्था है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि विश्व व्यापार संगठन सरकार के विभिन्न देशों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने तथा सीमा शुल्कों के बन्धनों को कम करने के लिए किया गया आवश्यक सिद्धान्तों तथा नियमों से सम्बन्धित बहुपक्षीय समझौता तथा बन्धन मुक्त संगठन है। इस प्रकार विश्व व्यापार संगठन एक बहुपक्षीय संधि है, जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों का निर्धारण करती है।

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    विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य

    विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

    (1) विश्व व्यापार संगठन का प्राथमिक उद्देश्य समझौते में दृष्टिगत नयी व्यापार प्रणाली को लागू करना।।

    (2) विश्व व्यापार को इस अवधि से बढ़ावा देना ताकि प्रत्येक देश उससे लाभान्वित हो।

    (3) विस्तृत वास्तविक आय तथा प्रभावी माँग में लगातार वृद्धि द्वारा रहन-सहन के स्तर में सुधार करना।

    (4) वस्तुओं, सेवाओं के उत्पादन तथा व्यापार का प्रसार करना।

    (5) बहुपक्षीय संगठित व्यापार प्रणाली को विकसित करना।

    (6) विश्व में रोजगार के स्तर को बढ़ाने के विचार से उत्पादन के स्तर तथा उत्पादकता को बढ़ाना। 

    (7) प्रशुल्क तथा व्यापार की रुकावटें तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्बन्धों में पक्षपातकारी व्यवहार को हटाना। 

    (8) उपभोक्ताओं के लाभान्वित करने तथा विश्व समन्वय की सहायता के लिए सभी व्यापारिक भागीदारों में प्रतियोगिता को बढ़ावा देना।

    (9) संसार के संसाधनों का अधिकतम मात्रा में विस्तार तथा उपयोग करना।

    (10) पर्यावरण रक्षा के साधनों का विस्तार आर्थिक विकास के विभिन्न स्तरों की आवश्यकताओं तथा समस्याओं के अनुरूप हो।

    (11) व्यापारिक एवं पर्यावरण सम्बन्धी नीतियों तथा सततीय विकास से सम्बन्ध स्थापित करना। विश्व व्यापार संगठन के ये उद्देश्य गैट के उद्देश्यों से काफी सीमा तक मिलते-जुलते हैं। फिर भी विश्व व्यापार संगठन के ये उद्देश्य, निर्यात प्रतिस्पर्धा की नीति, बाजार पहुँच तथा स्वतन्त्र व्यापार को अधिक सख्ती से लागू करके प्राप्त करने का प्रयास किया जायेगा। 

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    विश्व व्यापार संगठन की विशेषताएँ 

    व्यापार संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- 

    (1) विश्व व्यापार संगठन का अस्तित्व वैधानिक है।

    (2) विश्व व्यापार संगठन सामान्य सहमति से निर्णय लेता है। इसके लिए मतदान को भी व्यवस्था है।

    (3) विश्व व्यापार संगठन बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के क्रियान्वयन का प्रमुख अंग है। 

    (4) विश्व व्यापार संगठन अपनी अन्तर्राष्ट्रीय सदस्यता रखता है।

    (5) विश्व व्यापार संगठन सदस्यों के मध्य विचार-विमर्श के लिए एक फोरम है। इस फोरम में सदस्य राष्ट्र से सम्बद्ध मुद्दों पर विचार होता है तथा सम्बन्धित प्रपत्रों पर विचार-विनिमय होता है।

    (6) विश्व व्यापार संगठन बहुआयामी व्यापार समझौतों के अनुबन्धों के लिए एक फोरम है।

    (7) विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ विश्व भर के आयामों का तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक मेरुदण्ड है।

    (8) विश्व व्यापार संगठन का क्षेत्र गैट से अधिक व्यापक है। इसमें सेवाओं में व्यापार विवेकपूर्ण, सम्पति संरक्षण तथा विनियोग को शामिल किया गया है।

    (9) विश्व व्यापार संगठन एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है तथा निजी अस्तित्व पर आधारित है। 

    (10) विश्व व्यापार संगठन अनुबन्धों के अनेक पैकेजों का प्रकाशन करता है। जिसके प्रति सभी सदस्य राष्ट्र वचनबद्ध होते हैं। 

    (11) विश्व संगठन के सदस्य विश्व व्यापार संगठन को वैधानिक क्षमता, विशेषाधिकार एवं विभक्तियों से पूर्ण बनाते हैं, जो इस कार्य के संचालन के लिए आवश्यक है।

    (12) विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों के विशेषाधिकार तथा विभक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

    विश्व व्यापार संगठन के कार्य

    विश्व ब्यापार संगठन के प्रमुख कार्यों का उल्लेख निम्नानुसार किया जा सकता है-

    (1) प्रभुत्व एवं व्यापार से सम्बन्धित विषयों पर विचार-विमर्श के लिए सदस्य देशों को एक उपयुक्त मंच प्रदान करना।

    (2) विश्व संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।

    (3) व्यापार नीति की समीक्षा एवं प्रक्रिया से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना। 

    (4) विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों के बीच उत्पन्न विवादों के निपटारे हेतु नियमों तथा प्रक्रियाओं को लागू करना।

    (5) विश्व व्यापार समझौता तथा अन्य बहुपक्षीय समझौतों के क्रियान्वयन, प्रशासन तथा परिपालन हेतु आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना।

    (6) विश्व स्तर पर आर्थिक नीतियों के निर्माण में अधिक सामंजस्य लाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक तथा अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से सहयोग करना।

    (7) जीवन-स्तर में वृद्धि करने के लिए।

    (8) सेवाओं के व्यापार, विदेशी निवेश तथा पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करने के लिए। 

    (9) पूर्ण रोजगार एवं प्रभावपूर्ण माँग में वृद्धि की दशा में प्रभावपूर्ण कदम उठाने के लिए।

    (10) विश्व स्तर पर व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया के प्रावधानों को लागू करना। इस प्रकार विश्व व्यापार संगठन विश्व के देशों के मध्य एक सहज व्यापारिक नीति एवं सर्वमान्य व्यापारिक शर्तें तय करने वाला संगठन है, जो अपने सभी सदस्यों के व्यापारिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा करते हैं।

    विश्व व्यापार संगठन की संरचना

    विश्व व्यापार संगठन के ढाँचे को सुचारु संचालन को दृष्टिगत रखते हुए इसे निम्न प्रकार से गठित किया गया है-

    (1) मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन

    इस सम्मेलन की बैठक दो वर्ष में कम-से-कम एक बार अवश्य ही बुलानी पड़ती है जिसमें समस्त सदस्य देशों के व्यापार मन्त्री सम्मिलित होते हैं। यह सम्मेलन निम्नलिखित समितियों का गठन करने का अधिकार रखता है-

    (i) व्यापार एवं विकास समिति। 

    (ii) व्यापार एवं पर्यावरण समिति ।

    (iii) वित्त तथा प्रशासन समिति।

    (iv) भुगतान सन्तुलन प्रतिबन्ध समिति इत्यादि ।

    उपर्युक्त इन समितियों की सदस्यता वे राष्ट्र भी प्राप्त कर सकते हैं, जो पूर्व में गठन के समय सदस्य नहीं थे।

     (2) सामान्य परिषद् 

    विश्व व्यापार संगठन की संरचना में निम्नलिखित सामान्य परिषदें होती है-

    (i) व्यापार, वित्त एवं पर्यावरण के विकास से सम्बन्धित निर्णय स्वयं ले सकती हैं। 

    (ii) मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन के निर्णयों को यथानुकूल परिस्थितियों में लागू कर सकती हैं। 

    (iii) व्यापार नीति की पुनः समीक्षा करने के लिए सदस्यों की बैठक बुला सकती हैं।

    (iv) विश्व व्यापार नीति की पुनः समीक्षा करने के लिए सभा का आयोजन कर सकती है।

    (v) विश्व व्यापार संगठन से जुड़े हुए सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों, संस्थाओं तथा विशेषज्ञों से परामर्श लेने के लिए सम्पर्क स्थापित कर सकती हैं। 

    (3) बहुपक्षीय समझौता परिषदें 

    विश्व व्यापार के अन्तर्गत होने वाले समझौतों के संचालन को देखभाल के लिए इसमें पृथक-पृथक परिषदों का गठन किया गया है, जो निम्नलिखित हैं-

    (i) व्यापार सेवाओं पर सामान्य समझौता। 

    (ii) व्यापार सम्बद्ध बौद्धिक अधिकार परिषद् ।

    (iii) व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय परिषद् । 

    (iv) टैक्सटाइल एवं वस्त्रों पर समझौता परिषद् ।

    सचिवालय (Secretariat)- विश्व व्यापार संगठन का पृथक् अस्तित्व है। अतः ब्यूरोक्रेट्स अर्थात् नौकरशाही और अन्य कार्मिक संगठन के संचालन में सहायकों के रूप में कार्य करते हैं। सचिवालय का प्रमुख महानिदेशक कहलाता है।

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    विश्व व्यापार संगठन समझौता 

    उरुग्वे दौर की बहुपक्षीय वार्ताओं के परिणामों के आधार पर WTO के मूलभूत समझौतों में निम्न शामिल हैं- 

    1. वस्तुओं में व्यापार के बहुपक्षीय समझौते 

    वस्तुओं में व्यापार के समझौते में निम्न शामिल हैं-

    (i) गैट, 1994 (GATT, 1994)- इसमें विभिन्न नियमों को सम्मिलित किया गया है। गैट के भुगतान शेष के प्रावधानों पर समझौता हुआ है जो सदस्य भुगतान शेष के लिए रुकावटें डालते हैं, वे उन्हें न्यूनतम विघटनकारी ढंग से करें। यह कस्टम संघों और मुक्त व्यापार क्षेत्रों का समझौता मापदण्ड और कार्य विधियाँ निश्चित करता है। 

    (ii) कृषि सम्बन्धी समझौता (Agreement of Agriculture)- कृषि क्षेत्र पर की गयी मन्त्रणाएँ सर्वाधिक विवादास्पद रही हैं। 

    अन्तिम अधिनियम (Final Act) में कृषि में निम्न तीन क्षेत्रों पर अनुशासन अधिरोपित (Impose) करता है- 

    (अ) घरेलू समर्थन (Domestic Support)- यह उत्पादन में सहायता प्रदान करता है। सभी देशों को घरेलू समर्थन कीमत को कम करना होगा, इसे समर्थन के लिए कुल उपाय (Aggregate Measures for Support : AMS) कहा गया है, यदि यह उत्पादन के कुल मूल्य के 5 प्रतिशत से अधिक है परन्तु अल्पविकसित देशों के मामले में 10 प्रतिशत से अधिक मूल्य के लिए है। यदि समर्थन के लिए कुल उपाय (AMS) 10 प्रतिशत से अधिक हो जाते हैं, तब इसे 10 वर्षों के लिए या यू.एस. डॉलर या घरेलू करेंसी में 13.3 प्रतिशत तक कम करना होगा परन्तु अल्पविकसित देशों में इसे 6 वर्षों के लिए 20 प्रतिशत तक कम करना होगा। गैर-सीमा शुल्कों को भी आयात-निर्यात करों द्वारा प्रतिस्थापित करना होगा।

    (ब) नियत प्रतियोगिता (Export Competition)WTO का एक आधारभूत उद्देश्य प्रतियोगिता को समझा जा सकता है, जबकि WTO की प्रस्तावना में प्रतियोगिता का स्पष्ट रूप में वर्णन नहीं किया गया है। WTO के अधीन बनाये गये नियम व कार्यविधि वस्तु बाजार में प्रतियोगिता को बढ़ावा देते हैं और नियमित व्यवस्थाओं (Regulatory Regimes) के बीच प्रतियोगिता को बढ़ाना भी है।

    (स) बाजार पहुँच (Market Access)- WTO व्यापार नीति समीक्षा संयन्त्र (Trade Policy Review Mechanism) के लिए नियमों का प्रावधान करता है और उनका प्रशासन करता है। व्यापार अवरोधों को कम करके तथा भेद-भाव (Discrimination) को समाप्त करके, चाहे ये विदेशी उपायों तथा घरेलू नीतियों द्वारा किये जायें, बाजार पहुँच को काफी सुधारा जाता है। सीमा करों के कम करने की बाध्यता निर्यातकों को, बाजार पहुँच दशाओं के सम्बन्ध में काफी निश्चितता प्रदान कर सकती है।

    (iii) कपड़ा और वस्त्रों का समझौता (Agreement on Textiles and Clothing) - इस समझौते का उद्देश्य कपड़ा और वस्त्र क्षेत्र का गैट 1994 में एकीकरण है। बहुतन्त्रीय समझौते या एम. एफ. ए. (Multi Fibre Agreement) की 31 दिसम्बर, 1994 को स्वीकृत रुकावटें नये समझौते में सम्मिलित कर ली गयी हैं। एम. एफ. ए. (Multi Fibre Agreement) को सन् 2003 तक विभिन्न चरणों में समाप्त किये जाने का प्रावधान है तथा इस क्षेत्र को भी गैट की परिधि में लाने का प्रावधान है। एम. एफ. ए. विकासशील निर्यातक देशों के स्वतन्त्रतापूर्वक विकसित देशों को टैक्सटाइल एवं क्लोथिंग के निर्यात को प्रोत्साहित करने वाली सन्धि है। यह एक स्वैच्छिक संगठन की भाँति कार्य है तथा सामान्यतः गैट के सदृश ही कार्य करती है। एम. एफ. ए. की समाप्ति की पूर्व अवधि के अन्तर्गत विकसित देशों में संरक्षणात्मक प्रवृत्तियाँ दृष्टिगोचर हो रही हैं।

    (iv) व्यापार में तकनीकी बाधाओं का समझौता (Agreement on Technical Barriers to Trade)- यह समझौता सुनिश्चित करता है कि तकनीकी विमर्श और मानक परीक्षण और प्रमाणन प्रणालियाँ व्यापार के मार्ग में बाधक न बनें। 

    (v) व्यापार सम्बन्धी निवेश उपायों के पहलुओं का समझौता (Trade Related Investment Measures)- व्यापार से सम्बन्धित निवेश उपाय (Trade Related Investment Measuren's TRIMS) के अनुसार विदेशी निवेश पर सभी प्रकार के प्रतिबन्ध हटा देने चाहिए। प्रत्येक सदृश्य देश को विदेशी निवेशकर्ताओं को वे सभी सुविधाएँ देनी चाहिए जो ये घरेलू निवेशकर्ताओं को दे रहे हैं। विदेशी निवेशकर्ताओं पर निर्यात संवर्द्धन, स्थानीय कच्चे माल के प्रयोग या इसी प्रकार का कोई अन्य प्रतिबन्ध नहीं लगाया जाना चाहिए।

    संक्षेप में, WTO में TRIMS के प्रावधान विदेशी निवेशकों को विश्व में किसी भी आर्थिक क्रिया में निवेश करने के अवसर देते हैं।

    2. सेवाओं में व्यापार का सामान्य समझौता 

    GATS के अधीन पहली बार व्यापार के साथ-साथ सेवाओं के विदेशी व्यापार से भी प्रतिबन्ध हटाने का समझौता किया गया है। GATS में केवल उन्हीं सेवाओं को मुक्त व्यापार करने के लिए चुना गया है जिनके लिए उच्च किस्म की तकनीक (Advanced Technology) की आवश्यकता है, जैसे- बैंकिंग, शिपिंग, यातायात, बीमा, टेलीकम्युनिकेशन्स आदि। इन सेवाओं पर से सभी प्रकार के प्रतिबन्ध समाप्त कर दिये जाने चाहिए तथा विदेशी कम्पनियों को इन सेवाओं को प्रदान करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। इसका मुख्य लाभ विकसित देशों को होगा।

    3. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार सम्बन्धी पक्ष का समझौता 

    TRIPS के अन्तर्गत 4 प्रकार की बौद्धिक सम्पत्ति आती है- 

    () कॉपीराइट तथा तत्सम्बन्धी अधिकार, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेत, औद्योगिक डिजाइन, पेटेंट, संघटित सर्किट तथा व्यापारिक रहस्य (Trade Secrets)। यह समझौता बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से विभिन्न देशों की सरकारों के मध्य विचार-विमर्श को प्रेरित करता है।

    () WTO 'व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार' सम्बन्धी व्यवस्था उत्पादों के पेटेंट की व्यवस्था करती है। इसमें सभी देशों के विकास का स्तर एक माना गया है और उन्हें समान रूप से संरक्षण देने के लिए उच्च स्तर के मानकों (Standards) की व्यवस्था की गयी है। इस दृष्टि से कॉपीराइट, पेटेंट्स आदि को महत्व दिया गया है। जिन देशों में पेटेंट की व्यवस्था नहीं है, उन्हें यह व्यवस्था करने के लिए दस वर्ष का समय दिया गया है।

    () स्वेई-जेनेरिस (Sui-generis) व्यवस्था पेटेंट व्यवस्था से अलग है। स्वेई जेनेरिस संरक्षण का अर्थ पेटेंट जैसी प्रणाली से अलग किसी अन्य व्यवस्था से बौद्धिक सम्पत्ति की रक्षा करना है। इसका मुख्य लक्ष्य पौधे के प्रजनन (Plant Breeding) का संरक्षण करना है। 

    () समझौते में बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों के व्यापार सम्बन्धी पहलुओं की काउंसिल (Council for Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights) की स्थापना करने का भी प्रावधान है जो इस समझौते के कार्यान्वयन का तथा देशों की सरकारों द्वारा इसके पालन को मॉनीटर करेगी। 

    संक्षेप में, WTO में TRIMS के प्रावधान विदेशी विनियोजकों को विश्व में किसी भी आर्थिक क्रिया में विनियोग करने के अवसर देते हैं।

    4. विवाद निपटारा प्रणाली 

    सदस्यों के आपसी विवादों के निपटारे के लिए नियमों और प्रणालियों के समझौते में प्रावधान किये गये हैं। एक विवाद निपटारा संस्था (Dispute Settlement Body) की स्थापना की गयी है। इस विवाद निपटारा कार्यविधि में अल्पविकसित देशों के विशेष हित के कई लक्षण हैं जिसमें WTO के डाइरेक्टर जनरल के कार्यालय तक स्वयंमेव पहुँच (Automatic Access) शामिल है, ताकि उसकी मध्यस्थता से किसी विवाद का सन्तोषजनक हल प्राप्त हो सके और कम समय की सीमा में ही पंच (Penal) अपने विमर्श (Deleberations) अवश्य पूरे कर सकें।

    5. व्यापार नीति पुनरावलोकन तन्त्र 

    यह समझौता व्यापार तन्त्र के सुचारु रूप से चलने के लिए बहुपक्षीय और अनेक पक्षीय व्यापार समझौतों के अन्तर्गत व्यापार नीतियों और प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है। व्यापार नीति अनुवीक्षण (TPR) प्रक्रिया ने व्यापार तथा आर्थिक सुधारों का मूल्यांकन करने के लिए देशों को काफी सहायता दी है और कुछ अंश तक उदारीकरण में भी योगदान दिया है। भविष्य में, TPR प्रक्रिया अपने समझौतों को लागू करने का मूल्यांकन करने में WTO सदस्यों को सहायता देगी और व्यापार प्रणाली में सम्भावित प्रवृत्तियों के बारे में भागीदारों को चेतावनी भी देगी।

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